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________________ ४४० औषपातिकबरे पासित्ता पाडियकपाडियकाई जाणाई ठति, ठवित्ता जाणेहितो पच्चोरुहंति, पच्चोरुहिता, बहुहिं खुजाहिं जाव परिक्खित्ताओ जे. णेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छिता समणं भगवं महावीरं पंचविहेण अभिगमेणं अभिगच्छंति; 'पासति' पश्यन्ति, 'पासित्ता' दृष्ट्या, 'पाडियक पाडियकाईजाणाइ ठर्वेति' प्रयेकप्रयंकानि यानानि स्थापयन्ति, स्थापयित्या, 'जाणेहितो पच्चोरुडति' यानेभ्य प्रयवरोहन्ति अवतरति, 'पञ्चोरहित्ता' प्रत्यवरुहा, 'यह हिसुजाहिजार परिस्वित्ताओ' बहीमि कुजिकाभियावपरिक्षिमा =परिवेष्टिता यावच्छन्दापूर्वोक्ता विविधदेशजातिसमुद्भूता माह्या , जेणेव समणे भगव महावीरे तेणेउवागच्छति यत्रैव श्रमणोभगवान् महावीरस्तरैवोपागच्छन्ति, 'उवागउित्ता' उपागत्य 'समण भगव महागीरं पचविहेण अभिगमेणं अभिगच्छति' श्रमण भगवन्त महावीर पञ्चविधेनाऽभिगमेनाभिगच्छन्ति, पश्चविधममिगमन स्फुटीकरोनि-'त जहा' तद्यथा स्वरूप छ्वादिकों को देसा, (पासित्ता) देस कर उन सोने (पाडियकपाडियकाइ जाणाइ ठति) अपने २ (पृथक् २) यानों को रोक दिया और वे (जाणेहितो पञ्चोरुहात) उन यानों से नीचे उतरी, (पच्चोरुहित्ता) उतर कर (वहहिं खुजाहिं जाव परिक्खित्ताआ जेणेव समणे भगव महावीरे तेणेव उवागच्छति) उन अनेक कुब्जादिक दासियों से परिवृत होती हुई वे जहा श्रमण भगवान् महावीर थे वहा पर आयीं, (उवागच्छित्ती) आकर उन्हों ने (समण भगवं महावीर पंचविहेण अभिगमेणं अभिगच्छति) प्रभु के निकट जाने के लिये पाच प्रकार के अभिगमनों को अच्छी तरह धारण किया । वे पाच प्रकार के अभिगमन ये है-(सचित्ताण दवाण विओसरणयाए, अचित्ताण दवाण अवि શ્રમણ ભગવાન મહાવીરથી જરા દુર રહેલા તીર્થકરને અતિશય સ્વરૂપ' छत्रीने नेया, (पासित्ता) नन गधी (पाडियकपाडियकाइ जाणाइ ठवेंति) पातपाताना (of get) याना-२याने शी धा, मन तमा (जाणेहिती पच्चोरुहति) ते यानाभाथी नीये तरी, (पच्चोरुहिता) तरीने (बहूहि खुज्जाहि जाव परिस्खित्ताओ जेणेव समणे भगव महावीरे तेणेव उपागच्छति) ते भने કળ્યા આદિક દાસીઓના પરિવાર સહિત જ્યા શ્રમણ ભગવાન મહાવીર હતા त्या गावी, (पागच्छित्ता) मावीनतेमाये (समण भगव महावीर पंचविहेण अभिगमेण अभिगच्छति) प्रभुनी पासे or भाटे पाय हारना मनिममनाने या शत धारण ४ा ते पाय Rel मालगमन सा-(सचित्ताण दवाण
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
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