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________________ - m __ पोपवर्षिणी-टीका र ५५ सुभद्रादीना भगवदर्शनार्थ गमनम् ४३९ हंति, दुरुहिता णियग-परियाल सद्धिं संपरिबुडाओ चंपाए णयरीए मझंमज्झेणं णिग्गच्छंति, णिग्गच्छित्ता जेणेव पुण्णभद्दे चेइए तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता समणस्स भगव ओ महावीरस्स अदूरसामंते छत्तादीए तित्थयराइसेसे पासंति, यकाइ प्रयेकप्रत्येकानि-पृथक् २ कपितानि 'जत्नाभिमुहाइ जुत्ताई जाणाई'-यागभिमुरगानि युक्तानि यानानि-यात्राभिमुसानि भगवद्दर्शनार्यगमनाय सजितानि युक्तानि वलीवर्दै योजिनानि, यानानि रथान् 'दुरूदति अधिरोहति, 'दुलहिता' अरिरह्य, 'गियगपरियाल सदि' निजरूपरिवारै साम , 'संपरिबुडाओ' सन्परिवृता समन्तादेष्टिता , चम्पाया नगर्या मध्यमभ्येन, 'णिग्गन्छति' निर्गच्छन्ति, "णिग्गच्छित्ता निर्गत्य, जेणेव पुण्णभद्दे चेहए तेणेव बवागन्छति' या पूर्णभद्र चैय तौयोपागच्छन्ति, 'उवागच्छित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामते' उपागय श्रमगस्य भगवतो महावीरस्यादूरसमीप 'छत्ताहीए तित्ययराइसेसे' आदिकान् तीर्थफरातिशेपान-तीर्थकरातिशयान् यानों पर, जो भगवान के दर्शन के लिये ले जाने के निमित्त पहिले से सजित कर रखे हुए एव बलोवर्द आदिकों से युक्त थे, सगार हुई। (दुरुहिता णियग-परियाल सद्धिं) सवार होकर अपने २ परिवारों के साथ (सपरिखुडाओ) परिवष्टित होती हुई वे सब देविया (चपाए णयरीए मज्झमझेण) चपा नगरी के ठीक बीचा बीच के मार्ग से होकर (जिग्गच्छति) निकली, (णिग्गच्छित्ता) निकलकर (जेणेव पुण्णभद्दे चेहए तेणेव उपागच्छति) जिस ओर पूर्णभद्र चैय (उद्यान) या, उस ओर आयी, (उवागच्छित्ता) आकर (समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामते छत्तादीए तित्थयराइसेसे पासति) उन्होने श्रमग भगवान महावीर से कुछ दूर पर रहे हुए तीर्थंकरों के अतिशय हति) पहायान aju on याने।-२२। ५२२ मवानना शन 4 orat માટે પહેલાથી તૈયાર કરી રાખવામાં આવ્યા હતા તેમજ બળદ જોડી समेत खत तमा R31, (दुसहित्ता णियग-परियाल सद्धि) मेसीन पातपाताना परिवारनी साथे (सपरिचुडाओ) युटत न त मधी देवास। (चंपाए गयरीए मझम झण) A नाना मरमर पत्या-त्याना मागे धन (जिग्गच्छति) नीजी, (णिग्गच्छित्ता) नीजीन (जणेच पुण्णभद्दे चेइए तेणेर मागच्छति) २५ धूम औत्य (Gधान) तु २५ मावी, (नागचिन्ता) पीने (समणस्स भगरओ महावीरस्स अदूरसामते छत्तादीए तित्थयराइसेसे पासति) तेभरे
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
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