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________________ __पोयूषषिणी-टो। स ५५ सुभद्रादीना पूर्णभद्रचैत्ये समागमनम् ४४१ तंजहा-१ सचित्ताणं दव्वाणं विओसरणयाए, २-अचित्ताणं दव्याणं अविओसरणयाए, ३-विणओणयाए गायलट्टीए, ४-चखुप्फासे अंजलिपग्गहेणं, ५-मणसो एगत्तीभावकरणेणं समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणपायाहिणं करेति, 'सचित्ताण दवाण विओसरणयाए' सचित्ताना द्रव्याणा व्युसर्जनतया-सचित्तव्यत्यागन,१, 'अचित्ताण दवाण अविओसरणयाए ' अचित्ताना द्रव्यागामन्युमर्जन-- तया-अचित्तद्रव्याणा-चत्राभरणादीनामपरित्यागेन २, 'विणओणयाए गायट्ठीए' पिनयावनतया गात्रयट्या ३, 'चरखुप्फासे अनलिपग्गदेण' चक्षु स्पर्गेऽञ्जलिप्रग्रहेग= श्रीवर्धमाने महापारे चक्षुपिये सति अनलिविरचनेन ४, 'मणसो एगत्तीभावकरणेणं' मनस एकत्रीभावकरणेन-मनस =चित्तस्य एकत्रीभानकरण-एकन-भगवद्विपये स्थिरीकरण तेन ५, एतद्रूपेण पञ्चप्रकारेण अभिगमेन, 'समण भगव महावीरं तिक्खुत्ता आयाहिणपयाहिण करेंति, करिता वदति णमसति, बदित्ता णमसित्ता' श्रमणस्य ओसरणयाए, विणओणयाए गायलट्ठीए, चक्खुप्फासे अंजलिपग्गहेण, मणसो एगत्तीभावकरणेण) सचित्त द्रव्यों का परित्याग करना-प्रभु के दर्शन करने के लिये जाते समय अपने पास सचित्त वस्तुओं को नहीं रखना, अचित्तवस्त्रादिकों का त्याग नहीं करना, विनय से अवनत गान गरीर होना-विनयभार से नम्रीभूत होना, प्रभु के दिखते ही दोनों हाथों को जोडना, एव प्रभु की भक्ति मे मन को एकाग्र करना। इन पाच अभिगमनों से युक सपरिवार उन रानियों ने (समण भगव महावीरं तिक्खुत्ती आयाहिणपयाहिणं करति) श्रमण भगवान महावीर को तीन बार आदक्षिणप्रदक्षिण किया, (करित्ता वदति नमसति) विओसरणयाए, अचित्ताण दव्याण अविओसरणयाए, विणओणयाए गायलद्वीप, चक्खु 'फासे अजलिपग्गहेण, मणसो एगत्तीभावकरणेण) सयित्त द्रव्यांनी परित्याग કરે–પ્રભુ દર્શન કરવા માટે જતી વખતે પોતાની પાસે સચિત્ત વસ્તુઓ ન રાખવી ૧, અચિત્ત વસ્ત્રાદિકનો ત્યાગ કરે ૨, વિનયથી નમાવેલ ગાત્રશરીર રાખવું-વિનયભારથી નમ્રીભૂત થવું ૩, પ્રભુને જોતાજ બન્ને હાથ જોડવા ૪, તેમજ પ્રભુની ભક્તિમાં મનને એકાગ્ર કરવું પ, આ પાચ અભિगमनाथी युद्ध। सपरिवार ते शशीमाये (समण भगव महावीर तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिण करेंति) भएर सपान महावीरने पार माक्षियप्रक्षिy ४ा, (करित्ता वदति णममति) पछी १६ तेभर नभ२४॥२ उया,
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
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