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________________ - - पोयुपपिणी टीका र ५५ सुमद्रादीनां भगवदर्शनार्थ गमनम् ४३७ लासियाहिं लउसियाहिं सिंहलीहिं दमलीहि, आरबीहिं पुलिंदीहिं पकणीहि वहलीहिं मरुंडीहि सवरीहिं पारसीहि णाणादेसीहि विदेस-वेस-परिमंडियाहिं इंगिय-चितिय-पत्थियवियाणियाहिं सदेसणेवत्थ-गहिय-साहि चेडिया-चकवाल-वत्पन्नामि , 'लसियाहि लकुशिफाभि कुशदेशोत्पन्नाभि, 'सिंहलीहि' सिंहलीभि = सिंहलदेशोपनाभि 'टमिली हि द्रविड मिडिदेशोपन्नाभि , 'आरबीहि आरवीमि = अरपदेयोपन्नाभि , 'पुलिंदीहि पुलिन्दीभि =पुलिन्ददेशोपनामि , 'पक्कणीहि पक्वणीमि = पदणदेशोपन्नामि , 'यहलीहिं' वहीमि बहलनामकोऽनार्यदेशस्तोत्पन्नामि , 'मुरुंडीहि' मुण्टाभि मुरण्टदेशोपनामि, 'सरीहि अवरीमि शबरदेशोपनामि , 'पारसीहि पारमाभि पारसदेशो-पन्नामि , किरातादय सर्वेऽनार्यदेशा , 'णाणादेसीहि नानादेशीयामि ,'विदेस-वेस-परिमडियाहि विदेश-वेष-परिमण्डताभि विविध-देशपरिमण्टनयुक्ताभि , 'इंगियचितिय-पत्थिय-वियाणियाहि इगित-चिन्तित-प्रार्थित विज्ञाभि इङ्गितम् अभिप्रायानुरूपलकुशदेश की दासियों से, (सिंहलीहि) सिंहलदेश की दासियों से, (दमिलीहि) द्रविडदेश को दामियों से, (आरवीहिं) अरबदेश की दासियो से, (पुलिंदीहिं) पुलिन्ददेश की दासियों से, (पक्कणीहि) पक्कणदेश की दासियों से, (वहलीहिं) बहल नाम के अनार्य देश की दासियों से, (मुरुडिहि) मुरण्डदेश की दासियों से, (सवरीहिं) गबरदेश की दासियों से, (पारसीहि) पारसदेश की दासियों से, (ये किरात आदि जितने भी देश है वे सब अनार्य देश है) इन (णाणादेसीहिं) अनेक देश की दामिया, जो (विदेस-वेसपरिमंडियाहि) विदेशी वेष भूपा से सन्जित थीं, (इगिय-चिंतिय-पत्थिय-वियाणियाहि) इगित को अर्थात् अभिप्राय के अनुरूप चेष्टा को, चिन्तित को अर्थात् मनोगत भावको, हासीमाथी, (दमिलीहिं) द्रवि शनी हामीमाथी, (आरवीहि) २२॥ शनी सीसाथी (पुलिंदीहिं) पुतिः शनी भीमाथी (परकगीहि) ५४४५४ शनी हासीयाथी, (यहलीहिं) मी नामना सनार्यसनी भीमाथी, (मुरुडीहिं) भु२७ शनी भीमाथी, (सवरीहिं) शम२ शिनी हामीमाथी, (पारसीहि) પારસ દેશની દાસીએથી, આ કિરાત આદિ જેટલા દેશ છે તે બધા અનાર્ય हेश छ, २ (गाणादेसीहि) मने शिनी हासीमा २ (विदेस-वेस-परिमडियाहि) विशी ३५ भूषाथी सहित ती, (इगिय-चिंतिय पत्थिय वियाणियाहि) ઇગિતને એટલે અભિપ્રાયને અનુરૂપ ચેષ્ટાને, ચિત્તિને એટલે મનોગત ભાવને, -- --
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
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