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________________ ४३६ ओपपातिकमात्र याओ वहहिं खुजाहिं चिलाईहिं वामणीहिं वडभीहिं वन्चरीहिं वउसियाहि जोणियाहि पल्हवियाहिं ईसणियाहिं चारुणियाहिं चित्ता -यागत्-गन्दात् 'कृतवलिकर्माण कृतकौतुकमद्गलप्रायश्चित्ता' इति साह , तथा 'सलालकार-विभूसियाओ' सर्वा-उलवार-विमृपिता -सर्पग्लदारलता 'वहहिं सुजाहिं' वहीभि बुब्जाभि -वक्रारीरामि 'कृनडी' इति प्रमिद्धाभि , 'चिलाईहिं' किरातीभि =किरात देशोत्पन्नाभि , 'वामणीहिं' वामनामि -अतिहस्यगरीरामि , 'वडभीहिं' वटमिकाभि =वक्राऽध कायामि , 'कचरीहि' चरीभि =वर्वरदेशोपन्नाभि , ''वउसियाहि' बकुशिकाभि , 'जोणियाहि योनिकाभि =योनिकदेशोपन्नामि , 'पल्हवियाहि पहविकाभि =पहृवदेशोपन्नामि , 'ईसिणियाहि 'ईसिन' नामकोऽनार्यदेशस्तनोपन्नामि 'चारुइणियाहिं' चारकिनिकाभि , 'चारकिनिक' देशविशपोत्पन्नामि , 'लासियाहि' लासिकामि = लासकदेशो पायच्छित्ताओ) स्नान करके कौतुक तथा वलिकर्म से निवृत्त होकर, (सन्चा-लकार-विभूसियाओ) एवं समस्त अलकारों को धारण कर (वहहिं सुजाहि चिलाइहि ) अनेक कुबडी दासियों से, अनेक किरातिनियों-किरात देशमें उत्पन्न दासियों से, (वामणीहि) अनेक वामनियोसे-जिनका शरीर अत्यत हस्व-छोटा था ऐसी दासियों से, (वडभीहिं) अनेक वटभियों-जिनकी कमर निल्कुल झुक गई थी ऐसी दासियों से, (वब्बरीहि) बर्चर देशोद्भव अनेक दासियों से, (वउसियाहि) बकुश देश की दासियों से, (जोणियाहिं) यूनान देश की दासियों से, (पल्हवियाहि) अनेक पलविकाओं--पहवदेश की दासियों से, (ईसिणियाहिं)-इसिन नाम का एक अनार्यदेश है इस देश की दासियों से, (चारुइणियाहि) चारकिनिक देश की दासियों से, (लासियाहि) लासकदेश की दासियों से, (लउसियाहि) निवृत्त थाने (सब्बालकारविभूसियाओ) तभन सर्व मशिने धारण ४ीने (बहूहिं सुजाहिं चिलाईहिं) मने दुमडी हासीसाथी, मने शि तीसा-शित देशमा उत्पन्न थयेटी बचायाथी, (वामणीहिं) मन वामनिमा-रेन। २ मत्यत नाना-हY) ता अवी हासीमाथी, विडभीहि) मने पटलामा-मनी भ२ quी ६ हुती सपी हासीमाथी बमरीहिं ) मर-देशात्पन भने होसीयाथी, (बउसियाहिं) मधुश शनी सामाथी, (जोणियाहिं) यूनान शिनी सीमाथी, (पल्हवियाहिं) मने पदविय-पइस शनी वासीयाथी, (ईसिणियाइिं) सिन नामना से मनाय शछ त शनी हामीमाथी, । चाडणियाहिं) यालिनि: शनी दासीच्याथी, (लासियाहिं) सास शिनी सामाथी, (लउसियाहि) स्थशिनी सीमाथी (सिंहलीहिं) सिडस शिनी
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
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