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________________ ४२४ औपपातिकमा मणुयाणं, वहूई वासाडं वहुई वाससयाई बहूई वाससहस्साई अणहसमग्गो हतुट्टो परमाउं पालयाहि, इट्टजणसंपडिवुडो चंपाए णयरीए अण्णेसि च वहूर्ण गामा-गर-णयर-खेड-- 'अणहसमग्गो' अनघसमग्र , अनपश्चासौ समनश्चेति विग्रह , निष्पाप परिपूर्णसम्पत्तिपरिवारादिमि सम्पन्नश्च, यद्वा-अनघेन-पुण्येन समग्र =पूर्ण , यद्वा-न अघसमग्र =अनघसमग्र =सर्वविधपापरहित इत्यर्थ , 'हद्वतदो' दृष्टतुष्ट सन् 'पालयाहि' पालय 'परमाउ' परमायु --परमम् उत्कृष्टम्-अपमृत्युवर्जितमसण्डित पूर्णमायु , तथा-'इट-जण-संपखुिडो' इष्टजनसम्परिवृत -परिवारादिसमेत , चम्पाया नगर्या, 'अण्णेसिं च वहूर्ण गामागर-गयर-खेड-कबड-दोगमुह-मडव-पट्टण-आसम-निगम-संवाह - सनिवेमाण' अन्येपाच बहूना ग्रामा-ऽऽकर-नगर-खेट-कट-द्रोणमुख-मडम्ब-पटना-ऽऽश्रम-निगम-स्वाह-निवेगानाम्-तर-ग्राम -साधारणजनवासस्थानम्, आकर = लपणा-- दिसम्भवस्थानम् , नगरम् अविद्यमानकरम् , खेट-धूलीप्राकारयेष्टितम्, कर्वट-कुनगरम्, वाससहस्साई) बहुत वर्षांतक, बहुत सैकडों वर्षों तक, बहुत हजार वर्षों तक (अणहसमग्गो) पूर्ण पुण्यशाली रहते हुए अथवा परिपूर्ण सम्पत्ति एव परिवार आदि से स्पन्न अथवा सर्वनिधपापरहित होते हुए (हतुट्टो परमाउ पालयाहि) सदा आनद और स्तोष के साथ अखण्ड आयु भोगवे । (इट्ठ-जण-सपडिवुडो चपाए णयरीए अण्णेसि च बहूण गामा-गर-णयर-खेड-कबड-दोणमुह-मडव-पट्टण-आसम-निगम-सवाह-सनिवेसाण आहेवञ्च पोरेवञ्च सामित्त भट्टित्त महत्तरगत आणाईसरसेणावच कारेमाणे पालेमाणे) इष्ट जनों से परिवृत होते हुए आप चपानगरी के तथा और भी बहुत से गांवों के, आफर-लपण आदि के उत्पत्ति स्थानों के, नगरों-जिनमे कर नहीं लगता हो घा से ४४ परसो सुधी, ५ २ परसे। सुधा (अणहसमग्गो) पूर्ण પુણ્યશાલી રહેલા અથવા પરિપૂર્ણ આપત્તિ તેમજ પરિવાર આદિથી સ પન્ન अथवा सशत पापरहित २उता (हवतुद्दो परमाउ पालयाहि) सहा मान तथा सतोषपूर्व ४ अ५७ मायु सागवा, (इद्रजणसपडिवुडो चंपाए णयरीए अण्णेसिंध बहूण गामा गर-णयर-खेड-कव्वड-दोणमुह-मडय-पट्टण-आसम निगम संवाह-सन्निवेसाण आहेवन्च पोरेवच्च सामित्त भट्टित्त महत्तरगत्त आणाईसर सेणावच्च कारेमाणे पालेमाणे) 2 भासा 43 परिकृत (विसरायसी) माय ચ પાનગરીના તથા બીજા પણ ઘણા ગામના, આકરેના-લવણ આદિના ઉત્પત્તિસ્થાનના, નગરના-જેમાં કર ન લેવાતું હોય એવી વસ્તીઓના
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
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