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________________ - पीयूपयपिणो-टोका सू ३० प्रतिसलीनतातपोषर्णनम् રરૂર विफलीकरणं, से तं कैसायपडिसलीणया। से किं तंजोगपडिसंलीणया ? जोगपडिसलीणया तिविहा पण्णत्ता, तं जहां-१ मणजोगपडिसंलीणया, २ वयोगपडिसंलीणया, ३ कायजोगपडिसंलीविफलीकरण' रोभस्योन्यनिगेधो वा, उदयप्रामस्य वा लोमस्य विफलीकरणम्-परस्वग्रह्णालमा लोमन्तम्योन्य व निराकरणीय , कथञ्चित्वापि वस्तुनि लोभे सत्यपि स लोम उदितोऽपि निषेधनीच 181 से त कसायपडिसलीणया' सैपा कपायप्रतिमलीनता ।४। 'मे किं त जोगपडिसलीणया' अथ का सा योगप्रतिसलीनता? 'जोगपडिसलीणया' गोगप्रतिनलीनता-'तिविहा पण्णत्ता' विविधा प्रजमा ‘त जहा' तद्यथा 'मणजोगपडिसठीणया' मनोयोगप्रतिमलीनता-योगो बन्ध , कर्मणा सह मनसो योगो-मनोयोग , तस्य प्रतिसलीनता-निरोधशीलता । 'वयजोगपडिसलीणया'-वाग्योगप्रतिमलीनता २। 'कायजोगपडिसलीणया' काययोगप्रतिमलीनता ३। ' से किं त चाहिये ३ । इसी प्रकार लोभ भी आत्मा में उदित न हो सके, इस प्रकार प्रवृत्ति करनी चाहिये, यदि वह उदित हो चुका हो तो उसे विफल कर देना चाहिये ४ । तात्पर्य यह है कि चारों कपायों को जैसे भी बने उस प्रकार से जीतना । (से त कसायपडिसलीणया) यह कपायप्रतिसलीनता है। (से किं ते जोगपडिसलीणया) योगप्रतिसलीनता क्या है। (जोगपडिसलीणया तिविता पण्णत्ता) योगप्रतिसलीनता तीन प्रकार की कही गइ है, ( तजहा) वह इस तरह से, (मणजोगपडिसलीणया वयजोगपडिसलीणया कायनोगपडिसलीणया) कर्मों के साथ मनका वधन होना सो मनोयोग है, उसका गोपन करना मनोयोगप्रतिसलीनता है। वचनयोगप्रतिसलीनता एव काययोगप्रतिमलीनता भी वचनयोग को गोपना एव काययोग को गोपना है। इसी विषय को आगे के सूत्राश से सूत्र આ માટે પ્રયત્ન કરવું જોઈએ કદાચ તે ઉદિત થઈ ચુક્યું હોય તો તેને નિષ્ફળ કરી દેવું જોઈએ જ ____ तात्पर्य से छेयाश्य पायाभमने तेवा प्रारे ता (से त कसाय डिसलीणया) या उपायप्रतिसलीनता छ (से कि त जोगपडिसलीणया) प्रश्न-योग प्रतिस सीनता शुछ? उत्तर-(जोगपडिसलीणया तिनिहा पण्णता) योगप्रतिस दीनता प्रा२नी उपाय , (त जहा) ते या प्रमाणे छे-(मणजोगपडिसंलीणया वयजोगपडिसलीणया कायजोगपडिसलीणया) भनी साथे भन्नु भयन थाय મગ છે તેનું ગોપન કરવું તે મનોગપ્રતિસલીનતા છે વચનગપ્રતિસલીનતા તેમજ ટાયગપ્રતિસ લીનતા પણ વચનગને ગેપવુ તેમજ કાય
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
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