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________________ - - पीयूषषिणी टीका सु ९ पालतादिवर्णनम. जाव वसियधराओ पासाईयाओ दरिसणिनाओ अभिरुवाओ पडिरुवाओ ।। सू. ९॥ मूलम्-तस्स णं असोगवरपायवस्स हेटा ईसि कुमुमिता सदामातपुष्पा । 'जार वडिसयघरानो' यारठरतमकथग -गिगेभृषणमृपिता इव दृश्यमाना , याप छन्दोपादानात-'मजरियलबध्यवरायगुलटय०' दयादि द्रष्टव्यम्, मयूरितपल्लपितस्तपकितगुन्मिताटानि विशेषगानि लताम्यपि यो यानि, अतएव-ताम्यो लता--'पामाईयाओ' प्रामादीया -चित्तप्रमन्ताकारिण्य । 'दरिसणिजाओ' दर्शनीया इटु योग्या : 'अभिरुवामा' अभिपा, अभिमत-रूपवय 'पडिस्वायो' प्रतिरूपा -प्रतिविशिष्टरूपाय ॥ ९॥ टीका-'तम्स ण असोगवरपायवस्स' दयादि । तम्य अयोफरपादपन्य 'ईसि खपसमल्लीणे' ईपत स्कन्धपग्रीन --वृक्षम्कन्धममीपपती य 'हेवा' अग्रोकयुक्त थीं। (जार वसियाराओ) अतण्व प्रेमी ज्ञात होती थी कि माना इन्होंने शिगेभूपग ही धारण कर रखा है । यहा यावत् 'शद से “ मग्नि-पल्लवित-स्तवकित-गुल्मित " इयादि विशेषगोका ग्रहग हुआ है। अतएव ये रता भी (पामाईयाओ दरिसपिज्जानो अभिरुवाओ पडिस्चाओ) देखने वाले के चित्तको प्रमन्न करनवाल देवने योग्य, अमिरूप एव असाधारण शोभा से युक्त थीं । म् ९ ॥ _ 'तस्स णं असोगवरपायवस्स हेट्ठा' इत्यादि, (तस्स पा असोगवरपायवस्स हेडा) उस उत्तम अशोकक्ष के नीचे (इसि ग्वधसमल्लीणे) म्कन्ध (पेड) से कुछ दूरी पर (एत्य ण) किन्तु उमीके अप बित सुप्याथी यु हती (जाव वटिसयधराओ) तेथी मेम सातुडतु કે જાણે તેઓએ શિભૂષણ (મુકુટ ) જ ધારણ કરેલા છે અહી યાવત. थी 'मयरित पल्लरित स्तरफित गुल्मित ' त्या विशेषो। सीधेदा छ तेथी दातामा ५९ (पामाईयाओ दरिसणिज्जाओ अभिरुवाओ पटिस्वाओ)लनाગઓના ચિત્તને પ્રસન્ન કરવાવાળી, જેવાગ્ય, અભિરૂ૫, તેમજ અસાધારણ શોભાયુકત હતી (સૂ ૯) “ नस्म णं असोगररपायवस्स हेवा" ALE, इतम असोगवरपायवस्स हेदा) त्तम मी वृक्षनी नीये (ईसि सधसमल्टी) न्य (वृक्ष) यी १२६२ ( एत्य ण) ५ तना मान्यता
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
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