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________________ ४. औपपातिकमत्रे मलम्-ते णं तिलया वडला लउया जाव णंदिरुक्खा कुसविकुसविसुद्धरुक्खमूला मुलमंतो कंदमतो एएसि वपणओ भाणियव्वो जाव सिवियपडिमोयणा सुरम्मा पासाईया टीका-तस्य पूर्ववर्णितस्याऽशोकवृक्षस्य परिवेष्टका तिलका पूर्ववर्णिताऽशोकवृक्षवद् वर्गनीयाः, तथा बकुला लकुचा यावत्--गब्दस्योपादानात् नन्दिवृक्षेभ्यः पूर्वववर्तिनः छत्रोपगिरीपसप्तपर्णादयो राजवृक्षान्ताः सर्वं वृक्षा ग्राह्या , नन्दिवृक्षाः, एते वृक्षाः कीदृशाः । इत्याह-'कुसविकुसविसुद्धस्खमूला' कुश-विकुश विशुद्भवृक्षमूलादर्भादितृणापनयनात् निर्मलतरुतलाः, एतेपा पदाना 'वण्णओ' वर्णक -वर्णनम् , 'भाणियो ' भणितव्यः चतुर्थमूत्रवत् कथनीय इति यावत् , 'जाव' यावत् 'सिवियपरिमोयणा' शिविकापरिमोचना:-रथादिशिनिकान्त-वाहनाना परिमोचन स्थापन यत्र समता सपरिक्खित्ते) सब दिशाओं मे चारों ओर से अच्छी तरह घिरा हुआ था ॥ सू ६॥ 'ते ण तिलया बउला' इत्यादि, (ते ण तिलया बउला लउया जाव) यह सब तिलकबकुल लकुचवृक्ष से लगाकर नदिवृक्ष-पर्यन्त-वृक्षसमूह (कुस-विकुस-विसुद्ध-रुक्खमूला) अपने २ नीचे भाग मे कुस एव अन्य कुस जैसी घास आदि से रहित था (मूलमतो कदमतो एएसि वण्णओ भाणियव्यो जाब सिवियपरिमोयणा) पहिले ४ चतुर्थमूत्र में जो “ मूलमंत कदमत" इत्यादि पद वृक्षा के वर्णन करने मे कहे गये है उन सभी पदों का अध्याहार इन वृक्षोंके वर्णन करने मे भी कर लेना चाहिये। उन वृक्षों के नीचे બાજુથી સારી રીતે ઘેરાયેલું હતુ (સૂ ૬) 'ते ण तिलया बउला' छत्याल, (ते ण तिलया बउला लउया जाव) साधा तिवमा सयवृक्षथी माडीने नहि सुधीना वृक्षसभूह (दुस-विकुस-विसुद्ध रबसमूला) पातपाताना नीयनाभाभा जुस तेभर भी इसका घास माहिया २डित ता (मूलमतो कदमतो एएसिं वण्णओ भाणियव्यो जाव सिरियपरिमोयणा) याथा सूत्रमा મૂલમત કદમત” ઈત્યાદિ વૃક્ષોના વર્ણન કરવામાં જે પદ કહેલા છે તે બધા પદોને અધ્યાહાર આ વૃક્ષના વર્ણનમા પણ કરી લેવું જોઈએ તે વૃક્ષની નીચે જે પ્રકારે રથી માડીને શિબિડા (પાલખી) સુધીના
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
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