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________________ ४ - LitilH ओपपातिक चूयलयाहि वणलयाहि वासंतियलयाहि अइमुत्तयलयाहिं कुंदलयाहिं सामलयाहि सव्वओ समंता संपरिस्खिता ॥ सू ८॥ ___ मूलम्-ताओ णं पउमलयाओ णिचं कुमुमियाओ बहुविधाभि । 'पउमलयाहि पालताभि । 'गागलयाहि-नागलताभि । 'असोगलयाहिं' अगोफलतामि ।'चपगलयाहिं ' चम्पफलताभि , 'चुयलयाहि आम्रलतामि , 'वणलयाहिं' वनलतामि , ' वासंतियलयाहि । वासन्तिफलताभि , 'अडमुत्तयलयाहि' अनिमुक्तक मतामि 'कुदलयाहिं' कुन्टलतामि । 'सामलयाहि । श्यामलतामि , द्वमाभिर्दशजातीया ' भिलताभि, 'सबभो समता सपरिक्खित्ता' सर्वत समन्तात्सम्परिक्षिमा -सर्वदिक्षु परित सम्यक परिवेष्टिता ॥ मू० ८॥ 'ताओ ण पउमलयाओ' ता खल पालता --यामिस्तिलकादिनन्दिवृक्षान्ता वृक्षा परितो वेष्टिता ता लता कीदृश्य । अाह-णिञ्च कुसुमियाओ' नित्य प्रकारकी पद्मलताओं मे (णागलयाहिं ) नागलताओं से, (चपगलयार्हि) चपकलताओं से (चूयलयाहिं) आम्र-लताओं से, (वणलयाहि) वनललाओं से (वासतियलयाहिं ) पासतीलताओं से, (अइमुत्तयलयाहि ) अतिमुक्तलताओं से (कुदलयाहिं) कुन्दलताओं से और (सामलयार्हि) श्यामलताओं से (सबओ समता सपनिरिग्वत्ता) समस्त दिशाओंमे चारों ओर से घिरे हुए थे | स ८॥ 'ताओ ण पउमलयाओ' इत्यादि, ये पमलता आदि लताएँ कि जिनसे तिलकसे प्रारभार नदिवृक्ष तकके समस्तवृक्ष परिवेष्टित बने हुए थे, वे (णिञ्च कुसुमियाओ) नित्य प्रफुल्लित पुष्पों स मी मन: प्रारनी पावतामाथी ( णागलयाहि ) नातामाथी ( चपगलयाहि ) यक्षतामाथी (यलयाहि ) भाभ्रदातासाथी (वणलयाहि ) वन सतामाथी (वासतियलयाहिं ) पास तीसतामाथी ( अइमुत्तयलयाहि) अति भुत दातासाथी (युदलयाहि ) सतासाथी भने ( सामलयाहि ) श्याम सामाथी ( सव्यओ समता सपरिक्सित्ता) समस्त हिशयामा यारे २थी शयेसा ॥ (सू ८) " ताओ ण पउमलयाओ" इत्यादि - આ પઘલતા આદિ લતાઓ કે જેનાવડે તિલકથી માંડીને નવૃિક્ષ सुधीन सभात वृक्षो वीणा मेशा (णिच्चं कुसुमियाओ) नित्य
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
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