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________________ ૨ माता धर्मका चोरसेणावई जाए अहम्मिए जान विहरइ । तष्णं से चिलाए घोरसेणावई चीराणय जाव कुडंगे यात्रि होत्था । से णं तत्थ सोहगुहाए चोरपट्टीए पचण्ह चोरस्याण य एवं जहा विजओ तहेव सव्वं जाच रायगिहस्स दाहिणपुरथिमिल्ल जणवयं जाव नित्थाणं निज्रणं करेमाणे विहरइ ॥ सू० १ ॥ ' टीम-' aण ' इत्यादि । ततः खलु सवितो दामटो विजयस्य चोरसेनापतेरम्यः प्रान असि अनियष्टिग्राद =असि = करवालः, यष्टि =नशदण्डः, तौ गृहातीति, अमियष्टिग्राहः = असियष्ट्यादिमचालन चतुरो जावापि अभूत् । 'नानि यण' यदाऽपि च खलु स विजयचोर सेनापतिः तण से चिलाए दामचेडे इत्यादि । टीकार्थ - (तरण) इसके बाद (से चिलाए दासचेडे) वह दासचेटक चिलात (विजयस्स चोर सेना इस्स) चोर सेनापति उस विजय तस्कर का (अग्गे यावि हो० ) सप से प्रधान असि यष्टि, ग्रह- तलवार और लाठी के चलाने मे चतुर-बन गया । (जाहे वियणं से विज‍ चोर सेणावई गामघाय वा जाव पथको वो काउ वच्चइ, ताहे विण से चिलाए दासचेडे सुरपि हु कृवियबल ह्यविमहिय जाव पडिसेहेर, पुणरवि लट्ठे कयकज्जे अणहसमग्गे सीहगुह चोरपल्लि हव्वमाग च्छ ) जब वह चोर सेनापति विजय, ग्रामो का घात करने के लिये, ( तरण से चिलाए दासचेडे इत्यादि टीअर्थ - (तएण ) त्या२पछी ( से चिलाए दावचेडे ) ते हास थेट विश्वात ( विजयस्स चोरसेणावइस्स) और सेनापति ते विश्य तस्फुरनो ( अगो यावि हो० ) सोयी प्रधान भासि, यष्टि (साडी ) थाई, तरवार भने साठी ચલાવવામા ચતુર બની ગયા ( जाहे वियण से जिए चोरसेणावई गामधाय वा जाव पथको वा का वच, ताहे वियण से चिलाए दासचेडे सुबहु पिहू कूवियबल इयबिम हिय आज पडिसेद, पुणरवि लट्टे कथकज्जे अणहसमगे सीइगुह चोरपि ESCHINE) જ્યારે તે ચાર સેનાપતિ વિજય ગ્રામાના ઘાત માટે યાવત્ થિકાને છુટવા માટે નીકળતે હતા ત્યારે તે દાસ ચેટક ચિલાત ચારે
SR No.009330
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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