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________________ ६१३ मानाधर्मकथासूत्रे 1 च्यन्ते तेषां कौशेयवत्राणां ' रेशमीरख ' इति भाषा प्रसिद्धानां च तथाअन्येषा च स्पर्शेन्द्रियमायोग्याणा ब्रव्याणां शकटीशास्ट मरन्ति भृत्वा स्टीशाकर्ट योजयन्ति योजयित्वा यौन गम्भीर गम्भीरनामक पोतस्थान वो पागच्छन्ति, उपागत्य शकटीशाकट मोचयन्ति, मोचपिया 'पोहणं पोतनं नोकां सज्जयन्ति, सज्जयित्वा तेषाम् 'उमिन्द्राण' उत्कृष्टाना = श्रेष्ठानां शब्दस्पर्शरसरूप गाना काष्ठस्य च पानीयस्य च तन्दुलानां च 'सामियम्म य' समीतस्य = शिलाओं को, हस गर्भों को रेशमी वस्त्रों को, तथा और भी स्पर्शन इन्द्रिय को आनन्द देने वाली वस्तुओं को उन लोगो ने गाडी और गाडों में भरा। (भरिप्ता सगढी सागढ जोएति, जोहत्ता जेणेव गभीरए पोयट्ठाणे तेणेव उपागच्छति, उवागच्छित्ता मगढीसागर मोएति, मोइत्ता पोयवरणे सज्जेंति, सजित्ता तेसिं किद्वाण सद्दफरिसरम रूवगधाण कट्ठस्स य तणस्स य पाणियस्स य तदुलाणय समियरस य गोरसस्त य जाव अन्नेसिं च पण पोयवाण पोयवरण भति) भरकर के फिर उन लोगों ने गाडी और गाडों को जोत दिया । जीतकर के फिर वे वहाँ आये-जहां गंभीर नाम का पोतस्थान था - बदरगाह था । वहा आकर के उन लोगों ने गाड़ी और गाडों को ढील-रोक दिया । और फिर नौकाओंको सजाया- तैयार किया । और तैयार कर के बाद में उन्होंने उन श्रेष्ठ शब्द, स्पर्श, रस, रूप, एव गधोंको काठको तृण को पानीय द्रव्य को तदूलों को, गेहूँ के आटे को, गोरस घृतादिक - को લીસી શિલાને, હંસ ગર્લોને-રેશમી વસ્રોને તેમજ બીજી પણ ઘણી સ્પો ન્દ્રિયને સુખ પમાડે તેવી ઘણી વસ્તુઓને તે લેાકેાએ ગાડી અને ગાડાઓમા ભરી ( भरिता सगडी सागड जोएति, जोइत्ता जेणेत्र गभीरए पोयट्ठाणे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता सगडीसागड मोएति मोरता पोयवहण सज्जेंति, सज्जित्ता तेर्सि उक्किट्ठाण सफरिसर सरूपगधाण कटुस्स य तणस्स य पाणि यस्स य तदुलाण य समियस्त य गोरसस्स य जाव अन्नेसिं च वहूण पोयवहण पाउग्गाण पोयवहण भरेंति ) ભરીને તે લેાકેાએ ગાડી અને ગાડાઓને જોતર્યાં જેતરીને તે ત્યાથી જ્યા ગંભીર નામે પેાતસ્થાન (ખ દર ) હતું ત્યા આવ્યા તે લાકે એ ગાડી અને ગાડાઓને છોડી મૂકયા અને ત્યારપછી નૌકાઓને સુસજ્જિત કરી સુસજ્જિત કર્યાં બાદ તેમણે તે ઉત્તમ શબ્દ, સ્પર્શ, રસ, ३५ भने गधोने, अठने, घासने, पालीवाला द्रव्याने, तहुडो (भा) ने ત્યા આવીને મા
SR No.009330
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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