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________________ बानाधणा नाए जाव उवायमाणा२ चिति, तपण से णिज्जामए तओ मुहत्ततरस्स लद्धमइए३ अमूढदिसाभाए जाए यावि होत्था, तएणं से णिज्जामए ते वहवे कुच्छिधारा य एवं वयासीएव खल्ल अह देवाणुप्पिया । लद्धमइए जाव अमूढदिसाभाए जाए, अम्हे ण देवाणुप्पिया | कालियदीवे तेणं सबूढा एसण कालियदीवे आलोकद, तएणं ते कुच्छिधारा यह तस्स णिजामगस्स अतिए एयम सोचा हटतुटा पयरिखणाणकूलेण वाएणं जेणेव कालियदीवे तेणेव उवागच्छति उवागच्छित्ता पोय वहणं लवेति लवित्ता एगट्रियाहि कालियदीव उत्तरति, तस्थ ण ते वहवे हिरण्णागरे य मुवण्णागर य रयणागरे य वइरा गरे य वहवे तत्थ आसे पासति, कि ते १, हरिरणुसोणिसुत्तगा आइण्णवेढा, तएण ते आसा ते वाणियए पासति पासित्ता तेसि गंध अग्घायंति अग्धायित्ता भीया तत्था उबिग्गमणा तओ अणेगाइ उन्भमति, तेण तत्थ पउरतणपाणिया निब्भया निरुविग्गा सुह सुहेण विहरति ॥ सू० १ ॥ टीका-जम्नूस्वामी पृच्छति-यदि खलु भदन्त ! श्रमणेन भगवता महावीरेण यावत् सिद्धिगतिनामय स्थान सम्माप्तेन पोडशस्य ज्ञाताध्ययनस्यायमर्थ - -जहण भते ! इत्यादि। टीकार्थ-(भते । हे भदत! (जहण समणेण भगवया महावीरेण जाव संपत्तेण) यदि श्रमण भगवान महावीरने कि जो सिद्धिगति नामकस्थान को प्राप्तकर चुके हैं (सोलसमस्स णायज्ञयणस्स अयमढे पण्णत्ते सत्तरजइण भते ! इत्यादि -(भते ! ) 3 महन्त ! (जइण समणेण भगवया महावीरेण जाव सपत्तेण ) ने श्रम लगवान महावीरे-२-या सिद्धगति नामना स्यानने મેળવી ચૂક્યા છે
SR No.009330
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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