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________________ ५०८ HATHAN 'हीणपुनचाउपसा !'दीनपुयागिकः - मरन्धपुग्यमातुर्द निकजन्मा, चतुर्दशीमातो हि भाग्यमान गाति । तथा-'मिरी गिरिधी परिवग्गिया।" श्रीधी परिवर्मित! लक्ष्मी ना पुदिरनि !, नमामि, किम्बल त्व न जानासि, कणस्य वासुदेयम्प भगिनी दोपही सीमित हा आणमाणे.' एव्यमानयत् , 'त' तन्-तस्मान् ‘एममपि' पनामपि मानीतामपि आर पूर्व काद् इण्गों ' इत्यस्मात मत्ययः, 'भार' अया ग्वल 'जुद्ध सन्जे' युद्ध सज्मा-युद्धाय सज्जा मनतः सन् 'गिग्गालादि' निर्गल प्रतिनि.मर एष खलु कणो वासुदेवः पञ्चभिः पाण्डव. मह'अप' आत्मपष्ठ आत्मा षष्ठा यत्र स समूहे, द्रौपदी देव्या. 'कृ' मत्यानयन का हव्यमागत । तू अलब्ध पुण्य चातुर्दशिक जन्म वाला है-तृ-चतुर्दशी में उत्पन्न हुआ नहीं हैं-क्यों कि चतुर्दशी के दिन उत्पन आ व्यक्ति भाग्यशाला होता है किन्तु तू ऐसा नहीं है अर्थात् अभागा है त श्री ही, बुद्धिस रहित है। याद रस-या तो आज त नही है या मैं नही ह तुझे यह ख्याल नही है-कि यह द्रोपदी देवी पण वासदेव की वहिन है जिस तूने यहा हरण करवा फर मगवाई है। अतः यदि अपनी कुशल चाहता है, तो तू इस हरण करवा कर अपने यहा मगवाई गई द्रोपदा देवी को कृष्ण वासुदेव के पास जाकर पीले वापिस पहुँचा दे। नहीं ता युद्ध के लिये सज्जित होकर घर से पाहिर निकल आ। (एसण कण्ह वासुदेवे) ये कृष्ण वासुदेव (पहिं पडवेटिं अप्पर दोवई देवीए कूद हव्वमागए, तएण से दारुए सारही कण्हे ण वासुदेवे ण एव चुत વિચારે તેમજ નીચ લક્ષણે યુક્ત ) અમને એમ લાગે છે કે તું અલ* પુણ્ય ચાતુર્દગિક જન્મવાળે છે, એટલે કે તુ ચૌદશને દિવસે જન્મ્યા નથી કેમકે ચૌદશને દિવસે ઉત્પન્ન થનારી વ્યક્તિ ભાગ્યશાળી હોય છે તુ આ અને બુદ્ધિ વગરને છે બરોબર સાભળી લે કે આજે કા તે તું નહિ કે યા છે નહિ તને એટલી પણ ખબર નથી કે આ દ્રૌપદી દેવી કૃષ્ણ-વાસુદેવના બહેન છે—કે જેને તે હરણ કરાવીને અહીં મગાવી છેહવે જે તું " ભલુ ઈચ્છતે હેય તે તુ આ હરણ કરાવીને પિતાને ત્યાં રોકી રાખેલી દ્રોપ દેવીને કૃષ્ણ-વાસુદેવની પાસે જઈને પાછી સોપી દે નહિતર યુદ્ધના મદ तैयार ४२ मडार महानमा मापी (एस ण कण्हे वासुदेवे) मा पासुन (पचर्हि पडवेहिं अप्पछठे दोवई देवीए कूव इव्व
SR No.009330
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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