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________________ माताधर्मकथा Le या अन्या फरसाकल्यं = मविदिनसम् अन्योन्यरयमनादिरुमुपस्कारयन्ति । उप कार्य परिजाना विहरन्ति । ततः स तस्या नागथियो कदाचिदन्यस्मिन् समये 'भोषणशरण' भीमनवारक =भोजयितु नियमित भोजनवारक जात:- समायातथाप्यभाव, ततः सत्रु सा नागश्री: त्रिपुत्रमनं पान खाद्य स्नायमुपस्करोति-निष्पादयति, उपस्कृत्य एक महत्' साला ' सारचित-सारेण रसेन चित युक्त गढा शारदिक शरहतुमर' विचालाउ ' विक्कालापुक= निम्नादिवत् तिक्तरसयुक्ततुम्बीफल, सभारसयुक्त = हुमि अनेकविधैः समारद्रव्यैः शाकादौ स्वादगन्धरिशेपार्थ टिशुमेथिकाजीर कादीनि व्याघारद्रव्याणि निक्षिष्यन्ते, तैर्मिश्रित, 'हानगाढ' स्नेागतादिलावि तम् (युक्तम्) ' उकखडे ' उपस्करोति, उपस्कृत्येक विन्दुक परवले समादाय ( पडिणित्ता कल्ला कलि अन्नमन्नस्स गिहेसु चिउल अमण ४ उवक्ख डावेति ) स्वीकार करके अब वे एक दूसरे के घर पर विपुल मात्रा में निप्पन्न हुए अशनादिरूप चतुर्विध आहार को खाने पीने लगे। (तरण तीसे नागसिरीए मारणीय अन्नया भोषणवारए जाए यावि होत्या) किसी एक दिन नागश्री ब्राह्मणी की भोजन घनाने की बारी आई (तरण सा नागसिरी विउल असण ४ उक्सडेंति ) मो उस दिन उसने विपुल मात्रा मे चारो प्रकार का आहार बनाया (उबवडिता एग मर सालइय तिचालाउअ बहसभारसजुत्त रावगाढ उबक्खडे) आहार बनाकर फिर उसने शरदऋतु में उत्पन्न हुई अथवा रस से सरस बनी हुई तिक्तरसतुबी का शाक बनाया और उसमें स्वाद एवं सुधि के निमित्त हीग, मैथी, जीरे आदि का वधार दिया। उसे खूब अधिक घृत में छोका था इसलिये घृत उसके ऊपर तैर रहा था । ( पडिणित्ता कल्ला कलि अन्नमनस्स गिदेसु विउल असण ४ उवक्खडावेंति ) સ્વીકારીને તેએ એકખીજાને ઘેર પુષ્કળ પ્રમાણુમા અશનપાન વગેરે ચાર જાતના આહારીને ખાવા-પીવા લાગ્યા ( वरण वीसे नागसिरीए माहणीए अन्नया भोयणवारए जाए यावि होत्था ) કાઈ એક દિવસે નાગશ્રી બ્રાહ્મણીને લેાજન તૈયાર કરવાના વારા આવ્યા ( तएण सा नागसिरि चिउल असण ४ स्वकडे ति ) तेषु ते हिवसे पुष्पुण પ્રમાણમા ચારે જાતના આહારા મનાવ્યા (अवक्खडिता एग मह सालइय तित्तालाउअ बहुसंभार सजुत्त આહાર બતાવીને તેણે શરદ્ ઋતુમા ઉત્પન્ન થયેલી સરસ થયેલી તિક્તરસવાળી તુખીનું શાક બનાવ્યુ અને સુધીના માટે હીંગ, મેથી, જીરૂ વગેરેના વઘાર દ્વીધે /t हावगाढ उपखडे इ) અથવાતા રસથી તેમા સ્વાદ અને તે
SR No.009330
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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