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________________ १३७ अन गारघामृतपरिणी N० अ०१६ धर्मरुच्यनगारचरितवर्णनम् मकाम दातु, मकाम भोक्तु मकाम परिभाजयितुम् ततः = तस्मात् श्रेय = श्रेयस्कर खलु अस्माक हे देवानुमिया ! अन्योन्यस्य = परस्परस्य गृहेषु ‘कलाफ़ल्लिं' कल्याफल्य प्रतिदिवस विपुल = Tहुलम् , अशन पान खाद्य स्वायं 'उवखडाउ ' उपस्कार्यपरिभुजानानां विहर्तुम् । अन्योन्यस्य परस्परस्य एतमर्थ ते त्रयो भ्रातरो ब्राह्मणाः मतिश्रृण्वन्ति-स्वीकुर्वन्ति प्रतिश्रुत्य 'कल्लारल्लिं' घसाओ पफाम दाउ पाम भोत्तु पकाम परिभाएउ-त सेय खलु अम्ह देवाणुप्पिया । अन्नमन्नस्स गिहेसु कहाकल्लि विउल अमण पाण साइम साहम उवक्सडाविउ) हे देवानुप्रियो । अपने पास विपुलमात्रा में, गणिम, धरिम, मेय, एव परिच्छे यरूप चारों प्रकार का धन है, यावत् पद्मराग आदिरूप स्वापत्य भी हैं, कनक,सुवर्ण,रत्न,मणिमौक्तिक आदि सब कुछ है-और वह इतना अधिक है कि सात पीढी तक भी यदि खूब दान दिया जावे, पैठ २ खूब खाया जावे-और उसका हिस्सा भाग भी कर दिया जावे-तो भी वह समाप्त नही हो सकता है। इसलिये हम लोगों को उचित है कि हम लोग प्रति दिन एक दूसरे के घर पर अशन, पान, वाद्य एव स्वाद्यरूप चतुर्विध आहार विपुल मात्रा में बनवावे और (उचरखडावित्ता परिभुजमाणाण विहरित्तए ) घनवा कर उस का भोजन करे । ( अन्नम नम्स एयम पडिखणेति ) इस प्रकार का आपस का विचार उन्होंने एक दूसरे का स्वीकार कर लिया। जार आसत्तमाभो कुल्यमोओ पकाम दाउ पराम भोत्त पकाम परिभाएउ त सेय ग्वल्लु अम्ह देवाणुप्पिया ! अन्नमानस्म गिहेसु कल्लामल्लिं विउल असण पाण खाइम साइम उवाबडाविउ) હે દેવાનુપ્રિયેઆપણી પાસે પુષ્કળ પ્રમાણમાં ગણિમ, ધરિમ, મેય, અને પરિવ રૂપ ચારે જાતનુ ધન છે યાવત્ પારાગ વગેરે રૂપ સ્વાપત્ય પણું છે કનક સુવર્ણ, રત્ન, મણિ, મેતી, વગેરે બધુ છે-અને જે કઈ છે તે એટલું બધું છે કે સાત પેઢી સુધી પણ જે પુષ્કળ પ્રમાણમાં દાન કરવામાં આવે છતા તે ખૂટશે નહિ એથી અમને એ ગ્ય લાગે છે કે અમે બધા દરરોજ એકબીજાને ઘેર અશન, પાન, ખાદ્ય અને સ્વાદરૂપ ચાર જાતના माला। पुतण प्रभामा मनापापी मने ( स्वासहाविचा परिभुजमाणाण विहरितर) नावीन. तभी ( अन्नमन्नस्स एयमट्ठ पम्सुिणे जि) मारीत બધાએ એકમત થઈને વાત સ્વીકારી લીધી
SR No.009330
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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