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________________ हाताधर्मकथा दुदके आत्मा मुक्तः, तनापि च खलु रतायो जातः, को ममेट श्रदास्यतिन्मया स्वकण्ठे महाशिला बद्धा अगाये उदके आत्मा मुक्त, परन्तु तस्मिन्नुदकेऽपि मम तलस्पर्शो जातः, इति मम वचन कः अदास्यति ? पुनश-तेतलिपुशेण मया शुष्के तणकटेशृणपुजेऽग्निकाय प्रतिप्य प्रज्वलिते पस्मिन् आत्मा मुक्त , परन्तु सोऽग्नि काय 'पिआए 'विध्याता-उपशात, इत्येवस्पमपि मदीय वचन कः श्रद्धास्यति ? न कोऽपि, इत्येव स तेतलिपुन. औडयमणसकप्पे ' अपरतमनः सकल्प =भग्नोत्साह' सन् यावद् ध्यायति आर्तध्यान करोति |मू० १०॥ मुक्को,तत्यविण धाहे जाए को मेय सहिस्सह तेलिपुत्तण सुक्कसि तणकूडसि अगणिकाय परिखवित्ता अप्पा मुयो तत्व वि से अगणिकाए विज्झाए को मेय सद्दहिस्सह ? ओत्यमणसकप्पे जाव झियायड ) मुझ तेतलिपुत्रने एक बहुत बड़ी शिला को गलेमें वाधी और बाद में अथाह अतार अपुरुष प्रमाण जल में कूद पड़ा परन्तु वह जल कूदते री थाह घाला बन गया अथाह नहीं रहा मेरी इस सत्य पात पर भी कोन श्रद्धा करेगा। इसी तरह मुझ तेतलिपुत्रने एक बडे भारी शुष्क घास के ढेर में अग्नि लगाई और उस में अपने आप को प्रक्षिप्त कर दियापरन्तु वह अग्नि वुझ गई उसने मुझे भस्म नहीं किया मेरी इसबात को फौन श्रद्धा रूप से स्वीकार करेगा। इस प्रकार अपहत मन संकल्प वाला बन कर-उत्साह रहित होकर वह तेतलिपुत्र अमात्य आतध्यान में पड़ गया ॥ सू० १०॥ तत्थ रिण थाहे जाए को मेय सदहिस्मइ ! तेतलिपुत्तेण सुक्कसि तणकूडंसि अगणिकाय पक्खि वित्ता अप्पा मुक्को तत्थवि से अगणिकाए विज्झाए को मेय सदहिस्सइ ? ओहयमणसकप्पे जान झियायइ ) મે તેતલિપુત્રે એક બહુ ભારે મોટી શિલા ( પથરો ) ગળામાં બાધી અને ત્યાર પછી હું અથાહ (ઊડા) અતાર અપુરુષ પ્રમાણુ જેટલા પાણીમાં કૂદી ગયે પણ કૂદતાની સાથે જ પાણી થાહવાળુ (છીછરું ) થઈ ગયુ, અથાણું (ઉડુ) રહ્યું નહિ મારી આ વાત ઉપર પણ કેણ વિશ્વાસ મૂકશે ? આ પ્રમાણે જ મે તેતલિપુત્રે એક બહુ મોટા ભારે સૂકા ઘાસના ઢગલામાં અગ્નિ પ્રગટાવ્યા અને તેમાં મે પોતાની જાતને ઝપવાવી દીધી પણ તે અગ્નિ ઓલવાઈ કા તેણે મને ભસ્મ કર્યો નહિ મારી આ વાતને કેણ શ્રદ્ધેય માનીને સ્વીકારવા તૈયાર થશે? આ રીતે તે અપહતમન સકતવાળે (હતાશ) થઈને निरुत्साही मानी गयो भने मात ध्यानमा रूपी गयो ॥ " , , ॥
SR No.009330
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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