SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 129
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भनगारधामृतपिणी टी० अ० १४ तेतलिपुत्रप्रधानचरितवर्णनम् ८५ मूलम्-तएणं से पोहिले देवे पोटिलास्व विउव्वइ, विउवित्ता, तेतलिपुत्तस्म अदूरसामंते ठिच्चा एवं वयासी-ह भो । तेतलिपुत्ता । पुरओ पवाए पिट्टओ हथिभयं, दुहओ अचक्खुफासे, मज्झे सराणि वरिसंति, गामे पलिते रन्ने झियाइ, रन्ने पलित्ते गामे झियाइ । आउसो तेतलिपुत्ता । कओ वयामो १, तएणं से तेतलिपुत्ते पोट्टिलं एव वयासीभीयस्स खलु भो | पवजा सरणं, उक्काठियस्स सदेसगमणं छुहियस्स अन्न, तिसियस्स पाणं, आउरस्स भेसज्ज, माइयस्स रहस्स अभिजुत्तस्स पच्चयकरणं, अद्धाणपरिसंतस्त वाहणगमणं, तरिउकामस्स पवहणकिच्चं, पर अभिउजिउ कामस्स सहायकिच्चं खतस्स दतस्स जिइदियस्त एत्तो एगमवि णं भवइ । तएणसे पोटिले देवे तेयलिपुत्तं अमच्च एव वयासी-सुट्ठ णं तुम तेयलिपुत्ता। एयम आयाणाहि त्तिकटु दोच्चपि तच्चपि एवं वयइ, वइत्ता जामेव दिस पाउन्भूए, तामेव दिस पडिगए ॥ सू० ११ ॥ टीका-'तएण से' इत्यादि । 'तएण' तत खलु तेतलिपुत्रो आर्तध्यान रते सति स पोहिलोदेर 'पोट्टिलारूव' पोटिलारूप विकुर्वति क्रियशक्त्या 'तएण से पोहिले देवे' इत्यादि । टीकार्य-(तएण) इसके चोद (से पोहिले देवे ) उस पोहिल देवने (पोट्टिला स्व विउव्वड) पोटिला के रूप की विकुर्वणा की-अर्थात् वैक्रिय शक्ति के प्रभाव से उसने पोट्टिला का रूप धारण किया (विउन्वित्ता 'तएण से पोट्टिले देवे' इत्यादि 24-(तएण) त्या२ ५७ (से पोट्टिले देवे) ते पाहिलवे (पोट्टिला रूव विठव्वइ) पाहिलाना ३५नी Aget sी मेट १३ तिन प्रभावी
SR No.009330
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy