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________________ sterendeemed आसत्थस्स वीरात्थस्स सुहास नरगस्त तं विपुलं असणं४ परिभाएमाणा परिवेसेमाणा विहरति, तष्णं मिहिलाए सिंघाडग जाव बहुजणी अण्णमण्णस्स एवमाइनसइ एवं भासइ, एवं पनवेइ, एवं परूनेइ, एवं खलु देवाणु० । कुंभगस्स रण्णो भवति सवकामगुणिय किमिच्छय विपुलं असणं चहुणं समणाण य जात्र परिचिसज्जइ । ५०४ वरवरिया घोसिज्जइ, किमिच्छियं दिजइ बहुविहीयं । सुरअसुरदेवदाणत्र नरिद महियाण निक्खमणे ॥१॥ तणं मल्ली अरहा सवच्छरणं तिन्निकोडिसया अट्ठासीति च होंति कोडिओ असिति च सयसहस्साई इमेयारूत्रं अत्थ संप्रयाणं दलइता निक्खमामित्ति मणं पहारेइ ॥ सू० ३७ ॥ टीका- ' तेण कालेन ' इत्यादि । तस्मिन् काले तस्मिन् समये सौधर्म से शुक्रस्य इन्द्रस्य आसन चलनिस्म, तत' खलु शक्री देवेन्द्र = देशना मध्ये परमेश्व र्यवान् देवराज आसन चकित परति, दृष्ट्वा 'ओहिं' अवधि' पउनइ' प्रयुङ्क्ते, केन कारणेन ममामन चन्नीत्येतस्मिन् विषये स्त्रीयो नयति स्मेत्यर्थ । मयुज्य = अवधिज्ञानेन 'आभोए' आभोतयति=त्रिलोकयति, मल्लो अन् सप्रति 65 ' तेण कालेन तेष समएण ' इत्यादि । टीका- ( तेण कालेन तेण समएण) उस काल और उस समय में (सक्कस्ता सण चलइ ) इन्द्र का आसन चलायमान हुआ (तएण सके देविंदे देवराया आसण चात्रिय पासर, पासित्ता ओहि पज्जह, पउजि ता मल्लि अरह ओहिणा आभोएइ) देवों के बीच में परम ऐश्वर्यवान् " तेण कालेन तेन समएण इत्यादि ॥ टीअर्थ ( तेण कालेन वेण समरण ) ते अजे भने ते वपते ( सक्क स्वाण चल्इ ) Fन्द्रनु शासन रोजी यु (तएण सक्के देविंद देवराया आसण चालिय पासर, पासित्ता ओहिं पर जई, पर जित्ता मल्लि अरह ओहिणा आभोएइ) 27
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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