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________________ mE - - 4 taa. प्रत्येक २ फरेनल, परिगृहीत शिर मारतं मन्नोऽजलि कता हाम्रो *वयणाइ' उपनानि-कथनानि निवेदयन्ति स्म । ततस्तदनन्तर स कुम्भको सजा तेपा दूतानामन्तिके-समीपे, एतमय ' जितशत्रप्रमुग्या पडपि राजानो मल्ली छन्ति इत्येतद्प इत्तान्त युवा आसुरुत्ते' आशुरु -शोर क्रोषाविष्टा, या निमलिका-रेखात्रययुता भृकुटि भ्रुप कौटिल्य ललाट कुर्वन् पय-बल्य मणिकारण, आदी हे दताः 'नो दास्यामि' खल्लु अह युस्मा राजपा मल्ली विदेहराजवरकन्याम्' इति कन्वा इत्युक्त्या तान् पडपि दूतान् असत्कृत्य तेणेव उवागच्छति ) प्रवेश फार, जहा कुभक,राजा थे-वहा,आये,(उवा गच्छित्ता पत्तेय रेकरयल परिग्गहियं सिरसावत्त दसनह मत्थए अजलि कटु साण २ राईण चेयणाणि निवेदेति) वरा आकरा उन सषोंने भिन्न २ रूप से, कुभक राजा को दोनों हाथो की अजलि बनाकर और उसे मस्तक पर रखकर नमस्कार किया-नमस्कार कर के फिर उन्होंने क्रमश अपनो २ राजा का करना उसे सुनाया-(तएण से कुमए तेलि दुर्याण अन्तिण, एयम? सोच्चा आसुरुत्ते जावातिवलिय भिहिं एक वयासी) जितशत्रु प्रमुख छहो ही नृपति मेरी पुत्री मल्लीकुमारी को चाह रही हैं। इस प्रकार का समाचार उन दतों के पासासे सुनकर घहं कुमक राजा, इकदम क्रोधित हो गया और उसी समय उसकी त्रिवलियुक्त भ्रकुटि मस्तक पर चढ गई। । । इसी आवेश में उसने उन दूतो से इस प्रकार कहा-(न देमि में अह तुम्भ मल्ली, विदेह रायवरकपण त्ति कटुते छप्पिाइए , असक्का] (उवागच्छित्ता पत्तेय २ करयलपरिग्गहिय, सिरसावत्त, दसनह मत्थए अजलिं क्टु साण २ राईण, वयणाणि निवेदेति।), । । | ત્યાં જઈને તેઓ બધાએ જુદા જુદા રૂપમાં કુભક રાજાને બને હાથની અજલિ બતાવીને અને તેને મસ્તકે મૂકીને નમસ્કાર કર્યા અને નમસ્કાર કરીને તેઓએ વારાફરતી પિપિતાના રાજાનો સંદેશ તેમને કહી’ સંભળાવ્યું ....(तएणं से कु भए तेसिं याण अतिए, एयमट्ट सोच्चा आसुसत्तेनाव तिवं लिय भिडि एव वयासी) । 11) જીતશ પ્રમુખ છએ છ રજાઓ મારી પુત્ર મલીકુમારીને ચાહે છે આ જાતને સદેશ દતેના મોથી સાભળીને કુંભક રાજા એકદમ ગુસ્સે થઈ ગયો અને ત્રણે રેખાઓવાળી તેમની ભ્રકુટી ભમરો વક થઈ ગઈ છે If tथत मावेशमा रात त इतने ही समय 3- ।।। (नदेमि ण अह ! तुम्भ । मल्ली विदेहरण्यवर कण्णात्तिाका ते पिर
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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