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________________ ३७४ जाताधमेण्यास तहेव अहीणमतिरित्तं जाव कुंभगस्स रन्नो उवणेमो, तएण से कुंभए मल्लीए विदेहरायवरकन्नाए त दिवे कुंडलजुयलं पिणद्धेइ, पिणद्धित्ता पडिविसज्जेइ, त एसणं सामी अम्हेहि कुभगराय भवणंसि मल्ली विदेह० अच्छेरए दिटे तं नो खल्ल अन्ना कावि तारिसिया देवकन्ना वा जाव जारिसिया ,णं मल्ली विदेह०, तएण चदच्छाए ते अरहन्नगपामोखे सकारेइ, सम्माणेइ, सम्माणित्ता पडिविसज्जेड, तएणं चदच्छाये वाणियगजणियहरिसे दूत सदावेइ, जाव जइविय ण सा सयं रज सुका, तएण से दूते हह जाव पहारेत्थ गमणाए ॥ सू० २२॥ टीका-'तएण' इत्यादि । ततस्तनन्तर खलु सोऽरहन्नका, 'निरूपसर्गम्' उपसर्गाभावो जात , इति कृत्वा-इतिविज्ञाय प्रतिमा साकारसस्ताररूप नियम विशेप पारयति स्म। ततस्तदनन्तर खल ते ऽरहन्नाप्रमुखा नोकावाणिजका. सायात्रिकाः दक्षिणानुकूलेन वातेन यत्रैप गम्भीरक गम्भीरनामक पोतपत्तन नौका 'तएण से अरहन्नए' इत्यादि । टीकार्थ-(तएणं) इसके याद (से अरहनए ) उस अरहनक श्रावक ने (निरुव सग्गामिति कट्ट) उपसर्ग दूर हो गया है ऐसा जानकर पडिम परेइ ) अपने साकारी सथारे को पारित किया। (तएण ते अरहन्नग पामोक्खा नावावाणियगा दक्षिणानुकूलेणं वाएण जेणेव गभीरए पोचपणे तेणेव उवागच्छति ) इसके अनन्तर वे समस्त अरहनक प्रमुग्ध सायात्रिक पोत वणिक दक्षिणानुकूल वायु 'तएण से अरहन्नए' इत्यादि । ___टीर्थ-(तएण) त्या२ मा (से अरहन्नए) सरन श्राप निरुवस गामिति क१) ७५स (४८)तो रह्यो छे सेभ मानीने (पडिम पारेह) પિતાના સાકારી સથારાને પારિત કર્યો (तएण ते अरहन्नगपामोक्खा नावाराणियगा दक्खिगानुकूलेग वाएण जे गंभीरए पोयपट्टणे तेणेप उवागच्छति ) ત્યાર પછી બધા અરહનક પ્રમુખ સાયાત્રિક પિત વણિકે દક્ષિણાનું કુળ પવથી જ્યા ગભીર નામે નાવને લાગવાનું બંદર હતુ ત્યા પહેમા
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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