SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 515
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नि नने पिणी टी० अ० ८ अङ्गराजचरितनिरूपणम् ३७४ नरममा च प्रतीच्छति-गृह्णाति, प्रतीच्छय-गृहीत्वा च मल्लौं विटेई राजम्यान ति, शब्दयित्वा च तद् दिव्य मनोहर कुण्डलयुगल मल्ल्या विदेई टोमा 'पिणढेइ' पिनद्धयति=पिनद्ध करोति परिपापयतीत्यर्थः । सर्जयति-तां कन्यान्त' पुरे स्वभृत्यै प्रापयति, ततस्तदन्तर खलु ता तान् अरहन्नरुपमुखान् नौकावाणिजकान् विपुलेन वस्त्रगन्ध समान्य यावत् उच्छुल्क-शुल्कामार वितरति ददाति । अरहन्नतय तृभ्यः क्रयविकयव्यवहारनियमित राजशुल्क मभृत्यैन ग्रहीव्य प्रदत्तवानिति भावः । पितीर्य-शुल्काभावविपयफमाज्ञापत्र दत्वा, सलाः को भेट किये। (तण्ण कुभए तेसिं सजत्तगाण जायें डिच्छित्ता मल्ली विदेघररायकन सद्दावेइ सद्दावित्तो तें जुयल मल्लीए विदेह वरराजकन्नगाए पिणद्धह) कुभक राजा पत्रिको की उस दिये हुए रत्नादि भेटको तथा कुण्डलमय 7 कर लिया-स्वीकार करने के बाद फिर विदेहवरराजकन्या करा - री को बुलाया-धुलाकर वे दोनो दिव्य कुण्डल उस विदेह या मल्लि कुमारी को पहिरा दिये। मेर द्वित्ता पडिविसज्जेइ) पहिराकर फिर उसे वहां से दुतों के पान्तः पुर मे विसर्जितकर दिया। (तएणं से कुभए राया ते पामोक्खे नावावणिगये विउले ण वत्थगध जाव उस्सुक्क मिति इसके बाद कुभक राजाने उन अरहनक प्रमुख सायात्रिका का त्रि, गधमाला, अलकारो से सन्मान किया। सन्मान करके र तेसिं सनत्तमाण जाव पडिच्छइ, पडिन्छित्ता महीविदेह वररायकन्न वित्ता त दिन्न कुडलजुयल मल्ल र विदेह वरराज कन्नगाए पिणद्धई) રાજાએ તે સાયાત્રિકોની અને મોરની ભેટ તેમજ કુડળને કર્યા પછી વિદેહવર રાજકન્યા કુમારીને બોલાવી અને દિવ્ય કુળે વિદેહવરરાજકન્ય કુમારીને પહેરાવ્યા पडिविसज्जेइ) परावी. ते गा रा-- ૧૫થે ચાÉી કન્યા - पामो निउले ण वत्य ग - .. नसूस)
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy