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________________ - -- अनगारधर्मामृतपिणी टीका १०८ अमराजचरित निरूपणम् ऽवतरणस्थ नि वर्तने, तत्रैवोपागछति, उपागत्य च पोत नाव, 'ल्वेंति, लम्बयन्ति तीरस्थाने व कुपु रज्ज्वादिभिर्निध्य स्थिरी कुर्वन्ति । लविता' लम्बयित्वाश कटी शाक टिमलधुर कटहच्छव टाना समूह सज्जयन्ति-नवीनोपकरणरज्वादिभिः परिप्फुर्वन्ति, सज्जयित्वा त गणिम धरिम मेय परिच्छेच चतुर्विध क्रयाणकसमूह शस्टीशाफटिके ' सकामेति सक्रामयन्ति स्थापयन्ति, सक्राम्यतेऽरहन्नक प्रमुखाः सायानिकाः शरटीशाकटिक योजयन्ति-वलीपर्दादिभियोजित कुर्वन्ति, योजयित्वा शक्टारूदास्ते यत्रैव मिथिला राजधानीवर्तते तत्रैवोपागच्छन्ति, उपा. गत्य मिथिलाया राजधान्या बहिरग्रोद्याने प्रधानोद्याने शकटीशाकटिक मोचयति-शकटेभ्यो चलीवन् पृथक्कुर्वन्ति, मोचयित्वा मिथिलाया राजधान्या तन्मसे जहा गभीर नाम का नौका के ठहर ने का स्थान था (वदर गाह था) वहा पहुचे । ( उवागच्छित्ता पोय लवेति) वहा पहुच कर उन लोगों ने नौका को खड़ा कर दिया-तीर स्थित अनेक खूटों मे रज्ज्वादि से उसे पांधकर स्थिर कर दिया । (लचित्ता सगडसागड़ सज्जेति) खडा करके छोटी छोटी गाडियों को और गाडो को तैयार किया-नवीन उपकरण एव रज्ज्वादि से उन्हें सज्जित किया। (सज्जित्ता त गणिम ४ सगडि ४ सकाति) सज्जित करके फिर उन्होंने उस गणिम, धरिम, मेय एव परिच्छेद्य रूप चतुर्विध-क्रयाणक को नौका से उतार कर उन गाडी गाडों में भरा (सकामित्ता सगडी० जोएति, जोइत्ता जेणेव मिहिला तेणेव उवागच्छति ) भर कर फिर उन्हों ने उन्हें जोता-जोत कर जहा मिथिला नगरी थी वहाँ वे आये । (उवागच्छित्ता मिहिलाए रायहाणीए पहिया अग्गुज्जाणमिसागडंसगडी मोएइ मोइत्ता मिहिलाए रायहाणीए त महत्थ महग्य महरिह विउल रायरिह पाहुड कुडलजुयल (उवागाच्छित्ता पोय लवे ति) त्या पहायान तमा नायने भी सभी (नानी होरीमाथी तेने सारी शते माधी बाधा (ल बित्ता सगड सागड सज्जे ति ) त्या२ पछी नानी मामा तेभर मोटर मासाने ही मेरे साधनाथी स र्या (सज्जित त गणिम ४ सगडि ४ स कामे ति) સજજ કર્યા બાદ તેમણે ગણિમ, ધરિમ, મેય અને પરિચ્છેદ્ય રૂપ ચાર પ્રકા ૨ની વેચાણની વસ્તુઓને નાવમાથી ઉતારીને ગાડીઓ અને ગાડાઓમાં ભરી (सकामित्ता सगडी० जोएति, जोपत्ता जेणेव महिला तेणेव उवागन्छति) સામાન ભર્યા પછી તેમણે ગાડીઓ અને ગાડાઓને જોતર્યા અને જેતરીને જ્યા મિથિલા નગરી હતી ત્યા ગયા (उवागन्छित्ता महिलाए रायहाणीए वहिया अग्गुज्जाणसि सगडीसागड
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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