SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 512
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ माताधर्मकथा 'म्रभावेन भूयोभूय क्षमयनि, समयित्वा जरहन्नकस्य द्वे कुण्डलयुगले ददाति दत्ता यस्या दिशः स देव मादुर्भूतस्तामे दिश प्रतिगत देवलोक गत इत्यर्थः ।।१०२३॥ मूलम्-तएणं से अरहन्नए निरुवसग्गमिति कटु पडिमं पारेइ, तएणं ते अरहन्नगपामोक्खा नावा वाणियगा दक्खि. णाणुकूलेणं वाएणं जेणेव गंभीरए पोयपणे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता पोयं लंवेति, लवित्ता सगडिसागड सन्जेति, सजित्ता तं गणिम ४ सगडि० सकामेति, संकामित्ता सगडी० जोएंति, जोइत्ता जेणेव मिहिला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मिहिलाए रायहाणीए वहिया अगुज्जाणसि सगडीसागड मोएइ, मोइत्तामिहिलाए रायहाणीए त महत्थ महग्य महरिह विउल रायरिहं पाहुड कुडलजुयलं च गिण्हति, गिमिहत्ता मिहिलं अणुपविसति, अणुपविसित्ता जेणेव कुंभए तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता करयल० त महत्थ दिव्व कुंडल जुयल उवणेति । तएण तेसिं संजत्तगाणं जाव पडिच्छइ, पचाग नमन पूर्वक नमस्कार किया नमस्कार कर उसने अपने अपराध की उससे बड़े विनय के साथ चार २ क्षमा कराई। (खामित्ता) क्षमा कराकर (अरहनस्स) उसने अरहनक श्रावक के लिये (दुवे कुंडल जुयले दलयति-दलयित्ता-जामेव दिसिं पाउन्भूए तामेव दिसि पडिगए ) दो कुडल युगल दिये । देकर के फिर वह जिस दिशा से आया था-प्रकट हुआ था-उसी दिशा की ओर वापिस हो गया देवलोक को चलो गया । सूत्र "२३" । પચાગ નમનપૂર્વક નમસ્કાર કર્યા અને પિતાના અપરાધની બહુ જ વિનય સાથે पा२२ क्षमा रापी (खामित्ता) क्षमा ४२वीन (अरहन्नरस ते म२७न्न श्राप४ने (दुवेकुडलजुयले दलयति दलयित्ता जामेन दिसि पाउन्भूए तामेव दिसि पडिगए) બે કુડળની જડ આપી તે આપીને જે દિશામાથી આવ્યું હતું, પ્રકટ यया तो श त२५ देसी rat २हो ॥ सूत्र “२३" ॥ - . . .
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy