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________________ ज्ञाताधर्मकथासूत्रे 1 'ताई' तदा तौ श्रृगालौ श्रान्तौ परितान्तौ निर्विण्णौ श्रान्तादिशब्दाः पूर्व व्याख्यातः सन्तौ, 'जामेव दिसिं यस्या एवदिशः पञ्चम्यर्थे द्वितीया, आप स्वाद, 'पाउन्भूया' प्रादुर्भूतौ, उपागतौ, तामेव दिशं " पडिनया" प्रतिगतौ प्रत्यावृत्त्य गतौ ॥ सू० १२ ॥ भूलम् - तणं से कुम्मए ते पापसियालए चिरंगए दूरणए जाणित्ता सनियं २ गीवं णीणेइ, गीणित्ता दिसावलोयं करेइ, करित्ता जमगसभगं चत्तारि वि पादे णीणेइ, णीणित्ता ताए उक्किट्टाए कुम्मगईए वीड्यमाणे २ जेणेव मयंगतीरद्दहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छत्ता मित्तनाइ नियगसवगसंवंधिपरियणेणं सद्धिं अभिसमन्नागए यावि होत्या ॥ सू. १३ ॥ टीका — ततः खलु स कूर्मकस्तौ पापभगालको चिरं गतौ दूरं गतौ किया -- तिबारा भी वैसा ही किया -- परन्तु जब वे अपने कार्य में सफलित नहीं हुए (ताहे संता तंता परितंता निच्चिन्ना समाणा जामेत्र दिसि पाउव्या तामेव दिसि पडिगया) तब श्रान्त, तांत और परितांत होकर अपने व्यापार से उदासीन हो गये और जहां से आये थे वहां ही चले गये । इन श्रान्त आदि पदों की व्याख्या पहेले की जा चुकी है ।। सू. १२ ॥ 83 'aण' से कुम्मए' इत्यादि । टीकार्थ - - (तरण) इसके बाद ( से कुम्मए) उस कच्छपने (ते पात्रसिवालए) उन पापी शृगालोंको (चिरंगए दुरगए ) " बहुत समय हो गया નાખવા મટે પ્રયત્ન કર્યાં અને ત્રીજી વખત પણુ તેમજ “ પણુ તેઓ કોઇ युरीने शव्या नहि, (ताहे संता तंता परितंता निव्त्रिन्ना समाणा जामेत्र दिसिं पाउन्भूया तामेव दिसिं पडिगया) त्याने ते याची श्रृगाखेो श्रांत तांत ने परि તાંતઅને પાતના વ્યાપારમાં એટલે કે કાચખાને મારવાના કામમાં ઉદાસીન થઈ ગયાઅને છેવટે જ્યાંથી આવ્યા હતા ત્યાં જ જતા રહ્યા. અહી’ શ્રાંત વગેરે પદા આવ્યા છે તેની વ્યાખ્યા કરવામાં આવી છે. ા સૂત્ર ૧૩૫ 'तरण' से कुम्मए' इत्यादि । टीशर्थ - (पण ) त्यारणा ( से कुम्मए) ते अयणाये (ते पावसियालए) पाथी श्रृगासने (चिरंगए दूरगए ) 'बहु वमत थ गयो छ, तेसो हु हर
SR No.009328
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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