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________________ ૮ Tata क टीका- 'तरण तेसि इत्यादि - ततः खलु तयोः सार्थवाहदारकयोरन्यदा कदाचित् पूर्वापराहूकालसमये पश्चिमप्रहरे 'जिमियमुत्तरागयाणं' जिमित भुक्त' - आस्वादनेन अनुभूतम् उत्तरं तत्पश्चात् आगतयोः 'समाणा' सतोः 'आयंताणं' आचमितयोः - कृतचुलुकयोः 'चोक्खाणं' चोक्षयोः अन्नादिलेपापनयनेन शुद्धयोः अतएव 'परमसुईभूयाणं' परमशुची भूतयोः हस्तमुखादि प्रक्षालनेन परमपवित्रयोः 'सुहोमणचरगयाणं' सुखासनवरगतयोः सुखासनावस्थितयोः ‘इमेयाख्वे' अयमेतद्रूपो वक्ष्यमाणलक्षणः 'मिहो कहास मुल्लावे' मिथः कथासमुल्लापः विलासविषयकवार्ता संलापः 'समुपज्जित्था' सम्बुदपद्यत अभवत् तत्श्रेयः खलु आवयोः देवानुप्रिय ! कल्ये यावज्वलति विपुलमशन पानं खाद्यस्वायमुपस्कार्य तं विपुलमानानखाद्यस्वाय धूप टीकार्थ - (तपणं) इसके बाद (अन्नया कयाई) किसी एक समयकी (तेस सत्यवादार गाणं) उन दोनों सार्थवाह पुत्रों को (जिमियत्तु नरायाणं) जब कि वे जीम कर और खाकर कुल्ला करने के लिये अपने स्थान से उठ चुके थे और (आयंताणं) अच्छी तरह कुल्लाभी कर चुके थे । (चोक्खाण) तथा धोती आदि वस्त्रों पर खाते समय पडे हुए अन्नादिकों के सीतो को जब वे साफ कर शुद्ध हो चुके थे। परमसुङ्भूयाणं) हस्त मुख आदि के प्रक्षालन से उनके मुख आदि अवयव जब शुद्ध हो चुके थे तव (पुत्रावर कालसमयसि ) पश्चिम प्रहर में (सुहामणवरगयाण) जब वे एक स्थान पर आनन्द के साथ बैठे हुए थे - ( इसे यावे मिहोकडासमुल्लावे समुपज्जित्था ) इस प्रकार का यह बातचीत करते हुए विचार बांधा "तपणं तेसिं सत्थवाहदारगाणं' इत्यादि । टीशर्थ - - (नएणं) त्यार माह (अन्नया कयाइ ) अ मेड वजतनी बात छे. (तेसिं सत्यवाहदारगाणं) ने सार्थवाह पुत्रोने ( जिमिय भुत्तरागयाण) - જ્યારે તેએ જમીને પોતાના જમવાના સ્થાનેથી કાગળા કરવા માટે ઉભા થઇ ચૂકયા हता, अने (आयत्ताण) सारी रीते तेभाणे अगणा पशु पुरी सीधा हुता (चोक्खाणं) તેમજ ધાતી વગેરે વસ્રો ઉપર જમતી વખતે પડેલા અન્ન વગેરેના કણાને સાફ કરીને शुद्ध जनी युञ्ज्या हता. (परमसु भूयाणं) हाथ भों वगेरेना अक्षासनथी तेभना भों वगेरे अवयवो न्यारे २७ जनी शूक्ष्य. ता. (पुव्वावरण्ढकालसमयसि) द्विवसना Dear पोरां (मुहासणवरगयाण) न्यारे तेथे मे स्थाने मान पूर्व मेठा हता. मिहो कहास मुल्लाचे समुप्पज्जित्था ) त्यारे वातचीतनेो विया मच्येो (इमेया
SR No.009328
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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