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________________ - - 334 ६१४ जाताधर्म कथासूत्र अयं च खलु विजयस्तम्करो राजगृहस्य नगरस्य बनि द्वाराणि च 'अवदाराणि य' अपहाराणि लघुद्वाराणि च 'तहेव तथैव-पूर्ववदेवात्र मर्यथानानि वाच्यानि यावत् 'आभोएमाणे आभोगयन्-मोपयोगमवलोकयन मार्ग यमाणो गवेपयमाणो यौव देवदत्तो दारकस्तत्रैवोपागच्छति, उपागत्य देवदत्त दारक सर्वालङ्कारविभूपितं पश्यति, दृष्ट्वा देवदत्तस्य दारकस्याभरणालङ्कारेषु 'मुच्छिए' मन्छिता कतव्यव्यापारशून्यः 'गढिए' ग्रथितः एकाग्रतामापन्न, 'गिद्ध' गृद्धः लुब्ध 'अज्झोववन्ने' अध्युपपन्ना-ममत्वबहुलः पान्थकं दाम उस देवदन दारक को एकांत में छोड़ दिया और स्वयं उन डिंभक यावत् कुमारिकाओं के साथ घिरा हुआ होकर प्रमादवान् वन गयाअर्थात उन बालक बालिका आदिकों के साथ अन्यत्र खेलने लग गया। (इमंच णं विजए तक्करे रायगिहस्स नगरम्स बहणि दाराणि य अवदाराणि य तहेव जाब प्राभोएमाणे मग्गेमाणे गवसेमाणे जेणेव-देव दिन्ने दारण तेणेव उवागच्छइ) इतने में विजय तस्कर राजगृह नगर के अनेक द्वारों को अनेक छोटे २ द्वारों को पहले की तरह उपयोग पूर्वक देखता हुआ उन्हे बार २ तपासता हुभा, सूक्ष्मदृष्टि से उनकी गवे पणा करता हुआ जहाँ वह देवदत्त दारक था वहां आया । (उवागच्छिन्ता देवदिन्नं दारगं सवालंकारविभूसिय पासह) आकर उसने देवदत्त दारक को समस्त अलंकारों से विभूषित हुआ देखा। (पासित्ता देवदिन्नस्स दारगस्स आभरणालंकारेस मुच्छिए गढिए गिद्धे अज्ञाववन्ने पंथयं दास'वेडं पमत्तं पासइ) देखकर के वह देवदत्त के आभरण और अलंकारों में मू. विहरह) त्या चहाचीन तो वहत्तन प्रभात १२ थान यात ज्या भूल દી અને પિતે તે બવા ભિક, હિંભિકા કુમાર અને કુમારિકાઓની સાથે २मतमा ५डी गयो मेरो तेमनी साथे २भव! सायो. (इमंच णं विजए तक करे रायगिहस्स नगरस्स बहणि दाराणि य अवदाराणि य तहेव जान आमोएमाणे गवेसमाणे जेणेव देवदिन्ने दारए तेणेव उवागच्छद) એટલામાં વિજય નામે તે તસ્કર (ચેર) રાજગૃહ નગરના અનેક દરવાજાઓ, અનેક નાના દરવાજાઓને પહેલાની જેમ જ ચેરીની તાકમાં ઝીણી નજરે તપાસતો नता-यin वित्त तो त्या मा०या. (उपगच्छित्ता देवदिन्नं दारगं सव्वालंकारविभूसियं पासड) त्यां मापताना साथे तेरे हत्तने साथी मत थये नये. (पासिता देवदिन्नस्स दारगस्स आभरणालंकारेसु मुच्छिए गहिए गिद्धे अझोववन्ने पंथयं दासचेडं पमत्त
SR No.009328
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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