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________________ अनगारधर्मामृतवर्षिणीटीका अ २ सू. ७ देवदत्तवर्णनम् क वा पान्थकस्य दासचेटकस्य हस्ते ददाति । ततः खलु स पान्थको दासचेको भद्रायाः सार्थवाह्या हस्ताद् देवदत्तं दारकं कटयां गृह्णाति, गृहीत्वा म्वकाद् गृहात् प्रतिनिष्क्रामति, प्रतिनिष्क्रम्य बहुभिः डिम्भकैश्च डिम्भिकाभिश्च दारकैश्च दारिकाभिश्च, कुमारकैश्च कुमारिकाभिश्च मार्द्ध संपरितो यत्रैव राजमागस्तत्रैवोपागच्छति, उपआगत्य देवदत्तदारकमेकान्ते 'ठवेड' स्थापयति-उपवेशयति उपवेश्य बहुभिः डिम्भकैश्च यावत्कुमारिकाभिश्च सार्द्ध संपरिवृतः ‘पमते' प्रमत'तद्रक्षणे प्रमादवान् चापि 'विहरइ' विहरति बालकवालिकादिभिः सहान्यत्र रमते । चरित कर समस्त अलंकारों से विभूषित किया (करित्ता पंथयस्स दासचेट यस्प हत्थयंसि दलयइ) विभूषित करके बाद में उसने उसे पांथक दाम चेटथ के हाथमें दे दिया! (तएणं से पंथए दासचेडए भदाए पत्थवा हीए हत्थाओ देवदिन्न दारयं कडिए गिण्हइ) उस पांथकदासचेटकने भद्रा सार्थवाहीके हाथ से लेकर देवदत्त को अपनी कटी गोद में ले लिया। (गिहिना सयाओ गिहामी पडिनिक्खमइ) और लेकर वह अपने घर से बाहर निकला। (पडिनिक्वमित्ता बर्हि डिम्भिएहिं डिम्भयाहिय कुमारएहि य कुमारियाहि य सद्धि संपरिवुडे जेणेव रायमग्गे तेणेच उवागच्छइ) निकल कर वह अनेक डिम्भिकों से अनेक डिम्भिकाओं से कुमार और कुमारिकाओं से घिरा हुआ होकर जहां राजमार्ग था वहां पर गग (उवागच्छित्ता देवदिन्नं दारयं एगंते ठावेइ, ठावित्ता वह हि डिभएहि जाव कुमार यारि य सद्धिं संपरिवुडे पमत्ते यावि विहरइ। जाकर उसने सस त यी. (करिता पंथयस्त दासचेट यस्त हत्ययंसि दल यड) ने ઘરેણાંઓથી અલ કૃત કર્યા બાદ માતાએ તેને પાથક દાસ ચેટકને સોંપી દીધો (नए णं से पंथए दासचेडए भदाए सत्यवाहीए हत्थाओ देवदिन्न दारयं कडिए गिण्डइ) पाथ हासयेट मद्रा सार्थवाडीना माथी पाने साने पाताना माणाभ as दीघा (गिण्डित्ता सयाओ गिहाओ पडिनिक्ग्व मह) भने सानते ३२थी पार नियो (पडिनिकाख मित्ता वहहिं डिम्भ एहिं डिम्भियाहि य कुमारयाहि य कुमारियहि य सद्धि संपपिवुडे जेणेव रायमग्गे तेणेव उवागच्छद) नीजीन ते घ MBE-M-भકાઓ-બાળાઓ, તેમજ કુમાર અને કુમારીઓની સાથે ત્યાં રાજभाग तो त्यां गयो. (उवागच्छित्ता देवदिन्न दारयं एगले उवे ठावित्ता बहहिं डि एहिं जाव कुमारियांडि य सद्धि संपरिबुडे पमते गी
SR No.009328
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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