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________________ ६१२ ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्रे डिम्भाः अल्पकालिकाः शिशवः. डिम्भा एव डिम्भकास्तैः, डिम्भिकाभिश्च= अल्पकालिकवालिकाभिश्च, 'दारएहि य, दारकैश्च बहुकालिकबोलकैः, दारिकाभिश्व-बालिकाभिः सार्द्ध संपरिवृतः सहितः 'अभिरममाणे' अभिरममाणः= क्रीडन् सन् 'अभिरमई' अभिरमनि-तिष्ठति । ततः खलु सा भद्रा सार्थ वाही अन्यदा कदाचित् देवदन दारकं 'हाया' स्नात कारितस्नानं, 'कयवलिकम्म' कृतवालकर्माणम्र ष्टादि निवारणाय पशुपक्ष्यादि सर्वपागेनिमित्तं कारितानोत्सर्गम् 'कयकोउयमंगलपायच्छित्त' कृतकौतुकमङ्गलपायश्चित्त =दृष्टिदोषादिनिवारणार्थ कृतमपी तिलकादिकं सर्वालंकारविभूषितं करोति. डिम्भएहि य डिम्भियाहि य दारएहि य दारियाहि य कुमारेहि य कुमारियाहि य सद्धिं संपरिवुडे अभिरममाणे अभिरमड) अनेक डिम्भकों केछोटेऽवालको के साथ अनेक छोटी२ बालिकाओं के साथ, अनेक दा कों के साथ-डिमको की अपेक्षा कुछ अधिक उमरवाले बालकों के साथ कुछ अधिक अनेक दारिवाओं के साथ, अनेक कुमार और कुमारिकाओं के साथ उनसे युक्त होकर क्रीडा किया करता था। अर्थात उन सबके साथ मिलकर वह उस देवदन बालक को खिलाया करता था। (तएण सा भद्दा सत्थवाही अन्नया कयाई देवदिन्नं दारयं हायं कयवलिकम्म कय कोउयमंगलपायाच्छित्त सवालंकारविभूमियं करेड) एक दिन की वान है कि उस भद्रो सार्थवाही उस देवदत्त नामके अपने पुत्र को स्नान करवा कर तथा उसके निमित्त से वायसादि पक्षियों को अन्नादि का भागरूप वलिकर्म कर एवं कौतुक, मंगल और प्रायश्चित विधि समाभागामा मेसीन (बहहिं डिनरहि य हिनया हे य दारएहि य दारे याहि य कुमारेहि य कुमाग्यिाहि य सद्धिं संपरिपुडे अभिरममाणे अभिरमइ) मने BिHI-नाना नाना घl पाठानी साधे-नानी नानी माtઓની સાથે, ઘણું દારકેની સાથે એટલે કે ડિભર્ક કરતા જરા મોટી ઉમર વાળા બાળકની સાથે–ઘણી દારિકાઓની સાથે, ઘણુ કુમાર અને કુમારિકાઓની સાથે મળીને રમતો રમાડતા હતા એટલે કે પાથક બધાં બાળકોની સાથે મળીને દેવદત २भारत तो (तए णं सा भदा सत्यवाही अन्न या कयाइ देवदिन्नं दारयं हायं कयबलिकम्मं कयकोउयमंगलपायाच्छिन सघालंकारविभसियं करेइ) मे हिवस भद्रा सार्थवाडी पोताना ४ वहत्तन नव. ડાવીને તે નિમિત્તે કાગડા વગેરે પક્ષીઓને અન્ન વગેરેને ભાગ અપિને, કૌતુક, મંગળ અને પ્રાયશ્ચિત્ત વિધિ પૂરી કરી અને ત્યાર બાદ બાળકને સુદર ઘરેણાઓથી
SR No.009328
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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