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________________ ६० शाताधर्म कथागमो परामृश्य नागमतिमाश्च यावद् वैश्रमणप्रतिमाश्च लोमहस्तकेन प्रमाजयति रजोऽपनयति, प्रमाज्य उदकधारया 'अम्भुक्खेइ' अभ्युक्षति-अभिपिश्चति, अभ्युक्ष्य 'पम्हलसुकुमालाए' पक्ष्मलसुकुमारया-पक्ष्मवती सुकुमारा तया 'गधकासाइयाए' गन्धकापायिकया गन्धप्रधानकपायरागेण रक्ता शाटिका लघुवतं तया 'गायाई' गात्राणि 'लहेइ' रुक्षयति भोग्छति, रूक्षयित्वा 'महरिहं महाई बहुमूल्यं 'वत्थारुहण वस्त्रारोहण च वस्त्रसमर्पणम्, एवं 'मल्लारुणं' माल्यारोहणं च-पुष्यसमर्पण, गंन्धारहणं' गंधारोहणंच-चन्दनादिगन्धसमर्पणं, 'चुन्नारुहणं' चारोहणं च-अगरतगरादिगन्धद्रव्यचूर्णसमर्पणं, 'वन्नारुहग' वर्गारोहणंच-विलेपनद्रव्यसमपणं च करोति यावद् जई) झुक कर वहां रखी हुई उसने मयर पिच्छ की प्रमार्जनी को उठायाउठा कह नागप्रतिमाओं का यावत् वैश्रमण प्रतिमाओं का उस प्रमार्जनी से प्रमार्जन किया। (पमजित्ता उदगधाराए अभुक्खेइ) प्रमार्जन कर फिर उसने उनके ऊपर पानी की धारा छोडी- (अब्भुविखना पम्हलमुकुमालाए गंधकासाइयाए) पानी की धारा से सिञ्चित कर के फिर उसने उनका पक्षमल, सुकुमार गध कषाय से रंगी हुई वस्त्र से (गायाई लूइइ) उनके शरीर को पोंछा (लहिता) पोंछ कर (महरियं वत्थारुहणं च मल्लारुहणं च गंधारुहणं च चुन्नारुहणं च वन्नारुहणं च करेइ) फिर उसने उन पर वस्त्र का अारोपण किया- माल्य का आरोपण किया, गंध द्रव्य का आरोपण किया चूर्ण का आरोपण किया, विलेपन द्रव्य का श्रारोपण किया अर्थात् जब वह उनके शरीर को पोछ चुकी तब बाद में उसने उनको वेशकीमती-बहुमूल्य वस्त्र पहिराये-उन्हें बहुमूल्य मालाएँ पहिराई, उनके समक्ष लोमहत्थएणं पमज्जइ) नभान तो त्या भूसी भारना पीछांनी प्रभानी पाडी Sाीन ना वैश्रवधु योरेनी प्रतिभावान प्रभारी नाथी प्रभान यु (पमजित्ता उदगधाराए अभुक्खेइ) प्रभान या मारो प्रतिभाय। 6५२ धारा 43 सिंयन यु (अन्मुक्खित्ता पम्हलसुकुमालाए गंध कासाइयोए) જળધારાથી અભિષિક્ત કરીને તેણે તે પ્રતિમાઓને પશ્નલ, સુકુળ, ગધ, કષાયથી गामेसा वरथी (गायाई लहेइ) तमना शरीरने सूच्यु. (लूहिता) छीन (महरियं वत्थारुहणं च मल्लारुहणं च मंधारुहणं च चुन्नारुहणं च वन्नामहणं च करेइ) त्यार पछी त प्रतिभा-या ५२ वक्षो यदाव्यां, भामा परावी, अधદ્રવ્યો ચઢાવ્યાં, ચૂર્ણ ચઢાવ્યું, સુગંધિત લેપ ચઢાવ્ય એટલે કે જ્યારે તેણે પ્રતિમાઓને વસ્ત્રથી લૂછી લીધી ત્યાર પછી તેણે તે પ્રતિમાઓને બહુ કિંમતી વસ્ત્ર પહેરાવ્યાં, આઠ મલ્ય માળા પહેરાવી તેમની સામે ચ દન વગેરેના સુગંધિત તેલનું સિંચન
SR No.009328
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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