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________________ शाताधर्म कथाङ्गसुन्ने लंसि कूलंसि विझगिरि पायमूले दवग्गिसंताण कारणट्रा सएणं जूहेणं महइमहालयं मंडलं धाइत्तए त्तिक? एवं संपेहेसि संहिता सुहं. सुहेणं विहरसि। तएणं तुसं मेहा ! एन्नया कयाई पढमपाउसंसि महावुट्रिकायंसि सन्निवाइयंसि गंगा महानईए अदूरसामंते वह हि हत्थिणीह जाव कलभियाहिय सत्तहिय हथिणीसएहिं संपरिबुडे एगं महंजोयणपरिमंडलं महइमहालयं मंडलं घाएस, जं तत्थ तणं वा पत्तं बाकटं वा कंटए वालयावा वल्ली वाखाणूवा रुक्खेवा सुखेवा, तं सव्वं तिक्खुत्तो आहुणियर उटवे।स, हत्थेणं गिण्हसि, गिछिहत्ता एगंते एडेसि एडित्ता, तएणं तुमं! मेहा ! तस्सेव मंडलस्स अदूरसामंते गंगाए महानईए दाहिणिल्ले कूले विझगिरिपायमूले गिरिसु य जाव हिरसि। तए णं तुमं मेहा ! अन्नया कयाई मज्झिमए वरिसारतं से महा बुट्रिकार्यसि सन्निवाइयंसि जेणेव से मंडले तेणेव उवागच्छसि, उवागच्छित्ता दोच्चपि म डलं घाएसि, ऐवं चौरमे वासा रत्तसि महाबुटिकायंसि सन्निवइयसि जेणेव से मंडले तेणे उवागच्छसि, उवागच्छित्ता तच्चपि मंडलघायंकरेसि जतत्थ तणं वा जाय सुहं सुहेणं विहरसि ॥सू० ४२॥ टीका-'तएणं तुम मेहा' इत्यादि, हे मेघ ! ततः हस्तिनो द्वितीयभवे सुखपूर्वकं शिशुक्रीडानुभवानन्तरं खलु 'उम्मुक्कवालभावे' उन्मुक्तयाल 'तए णं तुमं मेहा' इत्यादि । टीकार्थ-इस प्रकार अपनी इस हाथी की दूसरी पर्याय में सुख पूर्व क्रीडा सुखों का अनुभव करने के बाद (तुमं मेहा ।) हे मेघ ! 'तए णं तुम मेहा!' इत्यादि टीडा---(तएणं) मा प्रभारी डाथीना पाताना मा ulon पर्यायमा सुमेथी छी। सुमो मनुलवता (तुमं मेहा !) मेध ! तमे धीमे धीमे उम्मुक्कयाल ,
SR No.009328
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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