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________________ ४.८ ज्ञाताधर्मकथागस स चामौ मासवेति कर्मधारयः, तम्मिन ज्येष्ठमासे इत्यर्थः 'पायवघंस समुट्टिएणं' पादपघर्षसमुत्थितेन, तत्र पादपाः वृक्षाः, तेषां घर्षः घर्षणं तेन वंशजालादीनां परम्परं पवनजनितातिनघर्पणेन सम्नुत्थिना समुत्पन्नः, तेन, 'मुक्कतणपतकयवरमालयसंजोगढीविएणं' शुष्कतृणपत्रकचवरमारुतसंयोगदीवितेन, तत्र शुष्कतृणपत्ररूपः कचवरः मारुतः पवनः, तयोः संयोगः संमीलन तेन दीपितः प्रज्वलितः, तेन, 'महाभयंकरेणं' महाभयड्रेण-महाभयजनकेन, 'हुयबहेण' हुतवहेन वह्निना 'वणद्वजालासंपलित्तेस' वनदवज्वालासम्प दीप्तेपु-तत्र बनददो-चनाग्निः, तस्य बालाः, ताभिः सम्प्रदीप्तेषु 'वणेमु' बनेपु 'धूमाउलाम' धूमाकुलासु-धूमव्याप्तामु 'दिसासु' दिशासु-चतुर्दिक्षु 'महावाय वेगेण' महापात वेगेन-भयंकरपवनाघातेन 'संघटिएम' संघहितेषु संयुक्तेय 'छिन्नजालेम'छिन्नज्वालेपु-त्रुटिनज्यालासमहेषु 'आवयमाणेसु' आपतत्म-मर्वतःममापतत्सु पोलरुक्खे' शुपिरवृक्षेपु-सछिद्रक्षेषु 'अंतोर' ( पायवघंमयमुटिएणं ) वृक्षो कः : गड़ से उत्पन्न हुई अर्थात्-पवन सं हिलते हुए वा आदि की परस्पर घर्षणा से पैदा हुई (मुक्क तण पत्त--जयवर- मारुयसंजोगदीविएणं) और शुष्क पत्र तथा तृणरूप कृडे में पवन के सयोग से उद्दीपित हुई एसी (महाभयंकरेणं) महा विकराल (बगद वजाला) जंगल की अग्नि से (वणेसु संपलित्तेसु) वन के प्रदीप्त होने पर (दिसामु धमाउलास) दिशाओं को धम से व्याप्त होने पर. नथा ( अंतो २ झिगायमाणेमु) भीतर ही भीतर जले हा (पोल्लरुक्खेम्सु) पोले वृक्षो के (महावाय वेगेण ) प्रबल वायु के वेग से ( संघटिएमु) सहित होकर (श्रावयमाणेसु) जमीन पर गिर जाने पर तथा उनमे लगी हुई (छिन्नजालेसु) अग्नि ज्वाला के मृलमामे ) क्या भूसभासभा-२४ महिनामां- (पायवघंससाहिएणं) वृक्षाना પાગ્યા અથડાવાથી ઉત્પન્ન થયેલી એટલે કે પવનથી હાલતા વાંસ વગેરેના પરસ્પર ઘર્ષ श्री पन्न येसी (मुक्कतणपनकयवरमोस्य संजोगढीविएणं) सू पाह। તેમજ ઘાસ વગેરેના કચરામાં પવનના સોગથી વિશેષરૂપથી ઉદીપ્ત થતા એવા (महाभयंकरण) मा प्रयड ((वणदवजाला ) बननी मनिथी (वणेस सपलित्तन) आभु यारे All यु (दिसामु धमाउलामु) हिशामा युभाथी व्यास 48 तेभान (अंतो २ झियायमाणेसु) अन्दर माता (पोटलयखेन) पक्ष पृटी (महाबाय वेगेणं) य४२ पवननी अभएधी (मघट्टितमु) ५'ने ( आवयमाणे) भानोस्त 45 140 ते ते
SR No.009328
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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