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________________ ३१८ ज्ञाताधर्म कथासूत्रे महाभटानां महायोधानां चटकरवृन्द विरतीर्ण समूह; नद्रूपो यः परिवार, नेन संपरिवृता-संयुक्तः राजगृदृस्य नगरम्य मध्यमध्येन निर्गच्छति, निर्गत्य यत्रैव गुण शिलक चैत्यं तत्रैवोपागच्छति, उपागत्य श्रमणस्य भगवतोमहावीररयातिशयमहिम्ना 'छत्ताइछत्त' छत्रातिछत्र-छत्रोपरिछत्र 'पडागाइपडागं' पताकातिपताकां छत्रमतिक्रम्य स्थितमित्यतिछत्रं छत्रां चातिछचं चेति छत्रातिछत्रं छत्रोपरिच्छत्रमित्यर्थः एवं पताकोपरिपनाकाम , 'विज्जाहरचारणे विद्याधरचारणान् तत्र धरन्तोतिधराः, विद्यया धरा विद्याधरा: वैतात्यपुराधिपतयः, चारणा:चरणम् आकाशे गमनागमनं तहियते येषां ते चारणा:-विधाचारणा जंघाचारणामुनिविशेषास्तान्, 'जंभएयदेवे' जुम्भकांश्च देवान् व्यंतरविशेषान् 'ओवयमाणे' अवपततो-गगनादवतरतः 'उप्पयमाणे' उत्पततः भूतलादुत्पततः 'पासइ' पश्यति पामित्ता' दृष्ट्वा त्यागिनो वीतरागस्य मर्यादामवगम्य चातुजमाणेण) सवार होते हीभृत्यने उनके ऊपर कोरट पुष्पो की माला से युक्त छत्रतान लिया। (महया मडचडगरविंदपरियालसंपरिवुडे) इस तरह महाभटों (योधाओं) के विस्तीर्ण सम्रह रूप परिवार से संयुक्त होकर वे मेघकुमार (रायगिहस्स नयरस्स मजा मज्झणं निग्गच्छइ) राजगृह नगर के ठीक बीचो बीच से होकर निकले। (निगच्छित्ता जेणामेव गुण सिलए चेहए तेणामेव उवागच्छड) निकल कर जहां गुण शिलक चैत्य था वहां गये। (उवागच्छित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स छत्ताईच्छत्तं पड़ा. गाइपडागं विजाहरचोरणे जमएयदेवे ओवयमाणे उप्पण्यमाणे पासइ) जाकर उन्होंने भगवान महावीर के अतिठाय कि महिमा से छत्र के ऊपर छत्रको वजा के ऊपर ध्वजा को, विद्याधरों को तथ। चारण ऋद्धि के धारक मुनियों को एवं जूभक देवों को आकाश से नीचे उतरते हुए तथा भूमि चुडे) 20 प्रमाणे माटो (योद्धामा) ना विशाल समूड ३५ परिवार युदत भेमार (रायगिहस्प णयरस्स मज्झ मज्जेणं निग्गच्छइ ) रामनगरनी ही पथ्य यने नया (निगच्छित्ता जेणालेय गुणसिलए । तेणामेव उवागुच्छ) नजाने त्या शशी थैत्य तु त्यां गया (जवागच्छिता समणम्म भगवओ महावीरस्म छत्ताइछापडागाइपडागं विज्जाहरचारणे भएय देवे ओवयमाणे उप्पयमाणे पास.) ने भारी मावान महावीरनी અતિશય મહિમાથી છત્રની ઉપર છત્ર ને, ધ્વજાની ઉપર ધજા ને, વિદ્યાઘરાને, તેમજ ચારણ વ્યક્તિને ધારણ કરનારા મુનિઓને અને ઝભક દેને આકાશમાંથી नीय तरता तेभ भिथी ६५२ vu caया (पासित्ता चाउरघंटाओ आसर
SR No.009328
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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