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________________ = अनगारधर्मामृतवर्षिणीटीका अ १ सू २५ मेघकुमारस्य भगवदेश नादिनिरूपणम् ३१७ गतः एतद्रूपं श्रुत्वा निशम्य हृष्टतुष्टः कौटुम्बिक पुरुषान् = राजसेवकान् शब्दयति, शब्दयित्वा एवमवदत् = एवमाज्ञापयत् क्षिप्रमेव भो देवानुप्रियाः 'चाउघंट' चातुर्घटं = चतस्रो घंटालंचमाना यरिमन् तं 'आसरहं' अश्वरथं = अश्वरोद्यो रथस्तं 'जुत्तामेव' युक्तमेव = अश्वैरुपेतं, उबवेह' उपस्थापयत सज्जीभूतं कृत्वाऽत्र समानयन ते च 'तहत्ति उवर्णेति' तथेति भवदाज्ञानुसारेण कार्य सम्पाद यिष्यामः इत्युक्त्वा तथैत्र उपनयन्ति रथमानयन्तीत्यर्थः । ततः खलु स मेघकुमारः स्नोतः यावत्सर्वालंकारविभूषितः चातुर्घण्टम्, अश्वरथं 'दुरूढे समाणे' दुरूढः=आरूढः सन् सकोरण्टमाल्यदाम्ना छत्रेण त्रियमाणेन भृत्यघृतेन 'महया भडचडगरदिपरियाल परिबुडे' महाभट करवृन्दपरिवार संपरिवृतको सुनकर (णिसम्म) और उसका अच्छी तरह विचार कर (तु) बहुत अधिक हर्षित होता हुआ संतुष्ट हुआ । पश्चात् उसने (कोडुंचियपुरिसे सदावे) राज सेवकों को बुलवाया (सदावित्ता एवं वयासी) बुलाकर उनसे ऐसा कहा (खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया) हे देवानुमियों ? तुम शीघ्र ही (चाउघंट आसरहं जुत्तामेव उवट्ठवेह) चारघंटे वाले रथ को - घोडे जोन कर ले आवो (तहत्ति उवर्णेति) वे भी 'तथेति' आप की आज्ञानुसार हर कार्य संपादित करेंगे' कहकर रथ को तैयार कर ले आए। (तपुर्ण मेहे पहाए नाव सव्वालंकारविभूसिए चोउग्घटं आसरह दुरूढे समाणे) जब सज्जीभूत होकर रथ आकर उपस्थित हो गया-तव मेघकुमार चार घंटो से सुशोभित उस रथ पर स्नानादि से निवट कर और समस्त अलंकारों से सुसज्जित हो कर रथमें बैठ गये (कोरंट मल्लदामेणं छत्तेणं धरिअने तेने! सारी पेठे विचार रीने ( हट्टतुट्टे) महुन प्रसन्न थतो, संतुष्ट थयो. त्यार माह तेले (कोडुंबिय पुरिसे सहावेइ ) रा सेवने मोसाच्या ( सद्दावित्ता एवं वयासी) खोसावीने तेभने धुंडे ( खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया) हे हेवानुप्रिय ! तमे सत्वरे चाउघंटं आसरहं जुत्तामेव उद्ववेह ) यार घंटवाजा स्थने घोडा लेतरी सावे ( तहन्ती उवर्णेति ) तेथे पशु तथेति—उहीने २थ सन्लवीने सच याव्या ( त एणं से मेहे हाए जाव सञ्चालंकारविभूसिए चाउरघंटं श्रासरहं दुरूढे समाणे ) ल्यारे सन्न्न थयेो रथ भावी ગયા ત્યારે મેઘકુમાર ચાર ઘટાઓથી સુÀાભિત રથ ઉપર સ્નાન વગેરે કાર્યથી निवृत्त थर्धने मने समस्त भारोथी सुसन्न्ति थाने मेसी गया. सकोरंटमलदामणं छोणं धरिजम | णेणं) मेसतांनी साथेन नाउरे तेभना थर औरंट પુષ્પાની માળાવાળા છત્ર તાણી દીધા. ( महया भडचडगरविंद परियाल संपरि
SR No.009328
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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