SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 262
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नानाधर्मकथाङ्गसूत्रे राम् उन्मुक्तः परित्यक्तः करो गन्यांना पर्वया कररहितां कुरुत, गृहक्षेत्राधुपमागे राजेदेयं द्रव्यं 'कर' इत्युलगते 'दशदिनलपर्यन्तं युप्माभिः सर्वैः करो न देयः' इति भावः । एवमन्यन्नापि नोध्यम् । 'अनडप्पदेल' अमटन वेगां-अविद्यमानः सटानां राजाऽजा निवेदकानां राजपुरुषाणां प्रवेश कुटु. म्बि गृहेषु चरयां सा तथोक्ता ताम् दशदिवरापर्यन्तं चूतना नृपाज्ञा न भविष्यतोति भावः। 'अदंडिलकुडंडिझ' अडिमकुदण्डिमा, दण्डेन निहतं लभ्यं द्रव्यं दण्डिमं, कुदण्डेन निवृत्तं द्रव्यं अदण्डिमं तर नारित यस्यां सा, तथा, ताम्, तत्र-दण्डोऽपराधानुसारेण राजगाध द्रव्य, जुडस्तु येन केनापि कारणेन जाते महापराये स्पं राजग्राह्य द्रव्यम्, अत्र अाब्दः अल्पार्थवाचकः नतु रखने वाली जितनी बाते हैं उन सबकी व्यवस्था करो जले-(उस्सुकं उक्कर)वेचने के लिये जो वस्तु बाजार में आती है उस पर राजा के लिये जो द्रव्य देय होता है वह अब १० दिन लकता भोग नहीं देना। इसी तरह गृह, क्षेत्र आदि रूप उपभोग वस्तु पर जो राज्य की तरफ से टेक्स नियत रहा करता है वह अब १०दिन न तुन्न सब पर माफ किया जाता है। (अमडप्पसं) राजा की क्या नवीन आज्ञा जारी हुई है इस बात को घर२ में पहुंचाने के लिये राज्य की ओर से भट नियुक्त रहा करते हैं। सो अब १० दिवस पर्यन्त कोई नवीन आज्ञा राज्य की तरफ से नहीं की जावेगी अतः तुन सब १० दिन तक की छुट्टी मनाओ। (अडियचडिम) अपराधियों के अपराधावलार जो जुर्माना राज्य में लिया जाना है उनका नाम दंड है लथा जिस किसी कारणं से जो मनुष्यों द्वारा अपरात्र बन जाता है उल पर जो राज्य की और से थोडा सा जुर्माना लिगा जाता है उसका नाम कुदड है। यह "कु" शब्द (उत्सवं उक्कर) तभी वे भाटे यन्तु तमे सायो ते वस्तुना ५२ने। કર (ટકસ) દસ દિવસ સુધી તમારે નહિ આપ આ પ્રમાણે જ ઘર, ખેતર વગેરેની જે ઉપગમાં આવનારી વસ્તુઓ છે તેમના ઉપર રાજ્ય કર નિયત કરેલો છે ते इस विवर सुधी ने भाट मा ४२०३मा मा छ (अनडप्प वेस) तनी નવીન આજ્ઞા શરુ થાય ત્યારે તેને દરેક ઘરમા પંહોચાડવા માટે રાજ્ય તરફથી ભેટ નિયુકત કરવામાં આવે છે, તે હવે દસ દિવસ સુધી કોઈ પણ નવી આજ્ઞા રાજ્ય त२५थी हा शन, यी तमे वा स हिवसनी २० गाणा. (अदंडिममहिम) गुनगानी पासेथी गुना महस र ४४ •यमा सेवाय छ ते ६' छ તેમજ ગમે તે કા શુ હા ! માણસેથી મોટો અપરાધ થઈ જાય છે તે બદલ રાજ્ય તરફથી તેની પાસેથી ઓછા દડ લેવાય છે તેનું નામ “કુદંડ છે. અહીં કું' શબ્દ
SR No.009328
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy