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________________ २३४ माताधम कथा में मूलम्-तएणं से अभए कुमारे जेणामेव पोसहसाला तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पुव्वसंगइयं देवं सकारेइ सम्माणेइ सक्कारिता सम्माणित्ता पडिविसजइ । तएणं से देवे सगजियं पंचवन्नं मेहनिनाओवसोहियं दिव्यं पाउससिरि पडिसाहरइ, पडिसाहरित्ता जामेव दिसिं पाउन्सूए तामेव दिसि पडिगए ॥१८ सू०॥ __टीका-'तएणं से इत्यादि । ततः खलु स अभयकुमारः, यत्रैव पौषधशाला तत्रैवोपागच्छति, उपागत्य पूर्वसंगतिकं देवं सत्करोति नमस्कारादिना, संमा. नयति-मधुरवचनादिना, सत्कृत्य संमान्य, प्रतिविसर्जयति अनुगमनादिना । तप्तः खलु स पूर्वसंगतिको देवः स गर्जितां पञ्चवर्णमेघनिनादोपशोभितां दिव्यां पाश्रियं प्रतिसंहरति-अन्तहितां करोति, प्रतिसंहृत्य यस्या एव दिशः प्रादु: भूतस्तामेवदिशं प्रतिगतः ॥सू० १८॥ 'तएणं से अभयकुमारे' इत्यादि टीकार्थ-(तएणं) इसके बाद (से अभयकुमारे) वह अभयकुमार (जेणामेव पो सहसाला तेणामेव उवागच्छइ) जहां पौषधशाला थी वहां आया (उवागच्छित्ता पुन्धसंगइयं देवं सक्कारेइ सम्माणेइ)-जाकर उसने उस पूर्व संगतिक देव का सत्कार और सन्मान किया (सक्कारिता सम्माणित्ता पडिविसज्जई) सत्कार और सन्मान करने के बाद फिर उसने उसे विदा दी. (तएणं से देवे सगजियं पंचवन्न मेहनिनाओबसोहियं दिव्वं पाउससिरि पडिसाहरड) इसके बाद उस देवने सगजित, पंचवर्ण विशिष्ट तथा मेघों किगर्जना से उपशोभित उस दिव्य प्राषश्री वर्षाकाल की शोभा को अन्तर्हित कर दिया। (पडिसाहरित्ता जामेव दिसि पाउन्भूए तामेव दिसिं पडिगए) 'तएणं से अभयकुमारे' इत्यादि आर्थ-(तएणं) त्या२पछी (से अभयकुमारे) मलयभार (जेणामेव पोसहसाला तेणामेव उवागच्छइ) त्यां पौषशा ती त्यां गया. (उवागच्छिना बुव्यसंगइयं देव सक्कारेइ सम्माणेड) ने तेमणु पूर्वसंगति व सन्मान ५.२ (माया सक्झारिता सम्माणित्तो पडिविसज्जइ) सला२ अने सन्मान ने विहाय ४या. (तएणं से देवे सगजिय पंचवन्नं मेहनिना. દેહદ પૂર્ણ થયા પછી જે. नन्न । साणे भलासार पाडसाहरइ) Cat२६ व समान કીડાઓ કરવાથી સંપૂર્ણ દેહદ' यालित ते आपश्रीन सन्तति शीधी. (पडि
SR No.009328
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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