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________________ अनगारधर्मामृतवर्षिणीटीका अ १ सू१७ अकालमेघदोहदनिरूपणम् २३३ नकगन्धहस्तिनं दुडा=समारूढासती श्रेणिकेन राज्ञा हस्तिकन्धवरगतेन पृष्ठतः २ समतुगम्यमानमार्गा, हथगज यावद्रवेण यत्रैव राजगृहं नगरं तत्रैवोपागच्छति, उपागत्य राजगृहस्य नगरस्य मध्यमध्येन यत्रैव स्वकं सवनं तत्रैनरोपागच्छति, उपागस्य विपुलान् मानुष्यकान् भोगभोगान् = शब्दादि विषयान् यावद् विहरति ॥ १७० ॥ दूहा माणी सेणीणं रन्ना हत्थिखंधवरणएणं पिटुओ समनुगममाणमग्गा हयगयजाव वेणं जेणेव रायगिहे नयरे तेणेच उद्याच्छाई) इसके बाद वह धारिणी देवी सेचनकगंधहत्थी पर आरूढ होकर श्रेणिक राजा से पीछेर अनुगम्यमान होती हुई तथा हयगज आदि चतुरंगिणी सेना से युक्त होती हुई राजगृहनगर की ओर वहां से रवाना हुई । जाते समय जिस प्रकार विविध प्रकार के बाजों की ध्वनि आदि के साथयह स्थित ( रवाना) हुई थी उसी प्रकार वह यहां से वापिस आते समय भी उसी ठाट से बाजों कि ध्वनि के साथर नगर में श्रई । ( उवागच्छित्ता रायगि : नयरं मज्झमज्झेणं जेणामेव सए भवणे तेणायेव उवामच्छ) आकर के वह राजगृहनगर के बीचो बीचवाले मार्ग से होती हुई जहां अपना भवन था वहां आई। (उवागच्छिता बिउलाई माणुस्साई भोग भोगाई जान विरइ) वहां आकर वह विपुल मनुष्यमत्र संबन्धी शब्दादि विषयोंको भोगती हुई अपना गर्भ कालका समय सुख पूर्वक विताने लगी | सूत्र ||१७|| सन्मानित होहुहा थ. (तएणं साधारिणी देवी सेयणयगंधहत्थि दूखढा समाणी सेणी एवं रन्ना हत्थिखंधवरगरणे पिट्टओ ? सम्णुगममाणमग्गा हयगय जाव रदेणं जेणेव रायगिहे नघरे तेणेव उवागच्छइ) त्यारमाह धारिणी ठेवी સેચનક નામના ગંધ હસ્તી ઉપર સવાર થઈને શ્રેણિક રાજા જેની પાછળ પાછળ જઈ રહ્યા છે તેમજ ચતુર ગણી સેનાથી જે આવેષ્ટિત થયેલી છે એવી તે રાજગૃહ નગર ભણી રવાના થઇ જતી વખતે જેમ તે અનેક જાતનાં વાજા એના મગળ ધ્વનિ સાથે રવાના થઇ હતી, તેમજ ત્યાથી આવતી વખતે પણ તેજ ઠાઠથી વાજા એના भधुर ध्वनेि साथै नगरसां प्रविष्ट थ . ( उवागच्छित्ता रायगिहं नगरं मज्झ मज्झणं जेणासेव सए भवणे तेषामेव उदागच्छइ) अविष्ट थाने तेथेो शगृह नगरना मध्यमार्ग थहने पोताना महेसमां गई. ( उवागच्छिना बिउलाई माणुस्साएं भोग भोगाई जाव विहर) भने मनुष्य संबंधी समस्त शहाहि अभ ભાગા ભાગવતો પાતાના ગર્ભકાળના સમયને રાણી સુખપૂર્વક પસાર કરવા લાગ્યાં.પસૂત્ર ૧૭ા ३०
SR No.009328
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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