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________________ अनगारधर्मामृतवर्षिणी टोका.सू, १० उपस्थ.नशालासज्जीकरणादिनिरूपणम् १३३ तेषां दामानि = मालाः तैः सहितेन छत्रेण भृत्येन त्रियमाणेन शोभमानः 'उभओ' उभयतः = दक्षिणवामपार्श्वयोः 'चउचामरवालवीइयंगे' चतुश्वामर वालवीजिताङ्गः, चतुर्णां चामराणां बालैः = केशैः वीजितान्यङ्गानि यस्य स तथा, 'मंगलजयसद्दकयालोए' मंगलजयशब्दकृतालोकः, मंगलजयशब्दः कृतो अनेन आलोके=दर्शने यस्य स तथा, मज्जनगृहात्मतिनिष्क्रामति, प्रतिनिष्क्रम्य 'अणेगगणनायगदंडणायगराईसरतलवर मांडबिय कोडबिय मंति महामंति गणगदोबारिय अमच वेड पीढमदनगरणिगमइभ से द्विसेणा वइ सत्थवाहय संधिवालसद्धिं संपरिबुडे' अनेक गणनायक दंडनायक राजेश्वर तलवरमाडं विककौटुम्बिकमंत्रिमहामन्त्रिगणकदौवारिकामात्य चेटपीठमर्दन गरणिगमेभ्यश्रेष्ठि सेनापतिसार्थवाददूतसंधिपालैः सार्धं सम्परिवृतः । तत्र गणनायकाः सामन्त भूपाः, दंडनायकाः- अपराधिषु यथायोग्य दण्ढमदानशीलाः कोट्टपाला इत्यर्थः गजानः = माण्डलिकाः नरपतयः, छत्रतान रखा था वह कोरण्ट के पुष्पों की माला से युक्त था - (उभओ चचामरवालवीइयंगे मंगलजयसद्दकयालोए) दक्षिण और वाम पार्श्व में जो इनके ऊपर चमर ढोले जा रहे थे । उनके वालों से इनके अंग विजित हो रहे थे। इनके देखते ही लोग जय हो इस प्रकार का मंगलकारी शब्द बोलने लग जाते थे । (मज्जणघराओ पडिनिक्खमइ) जव थे राजा उस घर से बाहर निकले और (पडिनिक्खमित्ता) निकल कर - ( अणेगगण नायक दंडणायगराई सरतलबर माडंबिय को हुं वियमंतिथहामं तिगणगदोवारिय अमच्च चेडपीढमद्दनगर निगम इन्भसेसेणाय सत्थवाहृदयसंधिवाल सद्धि संपररिडे) अनेक गण नायकों से सामंत भूपों से अपराधियों को यथा योग्यदंड देने वाले अनेक दंडनाय को से अर्थात् कोहवालों से मांडઉપર નાકરે તાણેલું છત્ર કારષ્ટ (એક પુષ્પવિશેષ) ના ફૂલની માળાથી શેભતું હતું. (उभओ चचामरवालवीइयंगे मंगल जयस कयालोए) भागी भने ડાખી બાજુએ એમના ઉપર ઢોળવામાં આવેલા ચમરાના વાળથી એમનાં અંગ વિજિત થઈ રહ્યાં હતાં. એમને જોતા જ લોકો જય થાઓ, જય થાએ' એવા મંગલ સૂચક शम्हो उभ्या२वा भांडता डुतां (मज्जणघराओ पडिनिक्खमह) न्यारे ते रान्न स्नानागारभांथी महार माव्या भने [पडिनिक्खमिता ] सावने (अगगण नायकदंडणायगराईसरतलवरमाडं बियको डुंबियमंतिमहा मंतिगणदोगवारिय अमच्चचेडपी ढमदनगर निगमइससे हिसेायइसंत्थवाहइय संधिवालसद्धिं संपरिबुडे) અનેક ગણુનાયકાથી, સામંત ભૂપેાથી, અનેક દંડનાયકાથી એટલે કે કાટવાળાથી, માંડિલક નરપતિરૂપ અનેક રાજાઓથી, ઐશ્વર્યવાન અનેક પુરુષોથી, नान
SR No.009328
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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