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________________ ૨૨૨ शाताधम कथाङ्गसूत्रे कोमलोन्मीलने, फुल्लंच तत् उत्पलं-पनं, फुल्लोत्पलं, कमलश्च हरिणविशेषः, तयो द्वन्द्वे फुल्लोत्पलकमलो, तयोः कोमल मुकुमारं उन्मीलनं दल-नयन विकाशो यस्मिन् तस्मिन्, कमलपत्र हरिणनेत्रयोर्विकाशे जाते-इत्यर्थः 'अहा' अथ रात्रि गमनानन्तरं 'पंडुरे' पांडुरे शुक्लीभूते 'पभाए' प्रभाते, मातःकाले 'रत्ता. सोगपगासकिसुयसुयमुहगुंजद्धरागवन्धुजीवगपारावयचलणनयणपरहूय सुरत्त लोयण जामुयण कुसुमजलियजलणतवणिज्जकलसिंहगुलनिगरख्वाइरेगरेहन्तसस्सिरीए' रक्ताशोकप्रकाशकिंशुकशुकमुखगुञ्जार्द्धरागवन्धुजीवकपारावतचरणनयनपरभृतमु. रक्तलोचन-जपाकुसुम-ज्वलितज्वलनतपनीयकलशाहजुलकनिकररूपातिरेकरेहतराजितस्वश्रीके-रक्ताशोकस्य प्रकाशः कान्तिः, किंशुकं-पलाशपुष्पं च, शुक्रस्य मुखं च, गुञ्जाधेरागं च बन्धुजीचवं च पारावतस्य% कपोतस्य चरणनयने च, परभृतस्य-कोकिलस्य सुरक्तं लोचनं च, जपाकुलमंच, ज्वलितज्वलन: अदीप्ताग्निश्च, तपनीयकलश: सौवर्णघटश्च, हिगुलको वर्णविशेषः, तस्य निकरश्व-समूहः, एतेषां रूपातिरेकेण रूपसादृष्येन राजमाना स्वा स्वकीया श्रीवर्ण लक्ष्मीर्यस्य स तथा तस्मिन्, रक्तमण्डल(फुल्लुप्पलकमलकोमलुम्मिलियंमि)-हरिण विशेष के नेत्र अच्छी तरह से खिल चुके थे (अहा) रात्रि हटने के बाद (पंडुरे पभाए) जघ धीरे धीरे प्रातः काल बिलकुल पंडुरस (फेवद)स्पष्टरूप से चमकने लगा था और जब (रत्तासोगपगास किमय, सुय मुह गुंजद्धराग, बंधुजीवग, पारावयचलणनयण, परहत मुरत्त लोयण जांसुयण कुसुम, जलिय जलण, तवणिज्जकलस हिंगुलय निगर रुवाइरेगरेहंत सस्सिरीयए) रक्त अज्ञोक की कान्ति के, पलाश पुष्प किंशुक के मुख के गुजार्द्ध के राग के बंधुजीवक के, पारावत (कबूतर के चरण और नयन के, कोयल के सुरक्त लोचन के, जपाकुसुम के प्रदिप्त अग्नि के, सौवर्ण कलश के, तथा हिंगुल के समूह के रूप के (फुल्लुप्पल कमल कोमलुम्मिलियंमि) तथा र विशेषना-नेत्र सुशत माया डता, (अहा) रात्रि पसार थतi (पंडुरे पभाए) न्यारे धामधीमे २५८३३ प्रभात शन थयु, भने (रत्तासोगपगास, किसुय, सुय मुह गुंजद्धगग, वधु जीवग, पारावय चलणनयण, परहत-सुरत्त लोयण जास्तृयण-कुसुम, जलिय-जलण, तवणिज्ज-कलस-हिंगुलय निगर ख्वाइरेगरेहंत सस्सिरीए) न्यारे २४त અશોકની કાતિ જેવું, કેસૂડા જેવું, ગુંજાઈ રંગ જેવું બંધુજીવક જેવું કબૂતરના ચરણ અને આંખ જેવું, કેયલની ખૂબ લાલ આંખ જેવું, જપા પુષ્પ જેવું, પ્રજવલિત અગ્નિ જેવું, સેનાના કળશ જેવું
SR No.009328
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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