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________________ stefani टीका ०३५ उ.११ सू०१ चरमाचरम कृ. कृतयुग्मै केन्द्रियनि० ५६९ 'एवं एए एकारस उद्देगा' एवम् उपरोक्त प्रदर्शित क्रमेणैकादशोदेशकाः संजाताः 'पदम तओ पंचमओ य सरिगमा' प्रथम स्तृतीयः पञ्चमश्च सदृश गमाः सहशालापकाः 'सेसा अट्ठ सरिसगमा' शेषा अष्टौ द्वितीयचतुर्थ पष्ठ सप्तमाष्टम नवम दशमैकादशाः सदृशालापकाः 'नवरं चउथे उडे अट्टमे दसमेय देवा न उबवज्जति तेउलेस्सा नत्थि' नवरं चतुर्थे पष्ठे अष्टमे दशमे चोदेश के देवानस्पद्यन्ते तथा तेषां तेजोलेश्या नास्ति तत्र चरमममय कृतयुग्मकृतयुग्मैकेन्द्रियो देशके, पष्ठे प्रथमप्रथम समयकृतयुग्मकृतयुग्मै केन्द्रियोद्देश के, अष्टमेप्रथमचरमसमय कृतयुग्मकृतयुग्मै केन्द्रियो देशके, दशमे - चरमचरम समय कृतयुग्म nashद्रयोदेश, एषु चतुर्षु देशकेषु देवोत्पत्तिर्न वक्तव्येति भावः । ॥ पञ्चत्रिंशत्तमे शतके प्रथममे केन्द्रिय महायुग्मशतं समाप्तम् |३५|१|| टीकार्थ- 'एवं एए एक्कारस उद्देलगा' हल पूर्वोक्त क्रम से ११ उद्देशक हैं । 'पढमो तहओ पंचमओ व सरिसगमा' इनमें प्रथम, तृतीय और पंचम ये उद्देशक सदृश अलापवाले हैं । 'सेसा अट्ट सरिसगमा ' और द्वितीय, चतुर्थ षष्ठ, सप्तम, अष्ठम, नवम, दशम एवं ग्यारह वये आठ उद्देशक समान आलापकवाले हैं । 'नदर' चउत्थे छुट्टे मे दसमे य देवा न ववज्जंति' परन्तु चौथे छठवें, आठवें और दशवे उद्देशक में देवों का उत्पाद नहीं है । इस लिये वहां तेजोलेश्या नहीं है । चरमसमय कृतयुग्म कृतयुग्म एकेन्द्रिय उद्देशक चतुर्थ उद्देशक है । प्रथम प्रथमसमय कृतयुग्मकृतयुग्म एकेन्द्रिय उद्देशक छठवां उद्देशक । प्रथम चाम समय कुनयुग्म एकेन्द्रिय उद्देशक आठवां उद्देशक है। चरमचरम समय कृतयुग्म कृतयुग्म एकेद्रिय उद्देशक दावां उद्देशक है । इनमें देवों की उत्पत्ति वक्तव्य नहीं हुई है । ॥ पैंतीसवें शतक में एकेन्द्रिय महायुग्म शत समाप्तः ॥ 'एवं एए एक्कारस उद्देगा' मा पूर्वोथी ११ अगियार उद्देशाओ । उद्या छे. 'पढमो तइओ पचमओय सरिसगमा' तेमां पहेली ने त्रीने तथा पाया सरमा ग्यास पंडवाणी हे 'सेसा अट्ठ सरिसगमा' तथा मीले, थोथो, छट्ठी, સાતમેા આમે નવમે, દસમે। મને અગિયરમે આ આઠે ઉદ્દેશાએ સરખા श्यासापडावाजा छे 'नवर' चथे छट्टे अट्टमे दस मे य देवा न उववज्र्ज्जति' ५२'तु ચેાથા, છઠ્ઠા, આઠમાં તથા દમમા ઉદ્દેશામા દેવોને ઉત્પાત થયે નથી. તેથી ત્યાં તેોલેસ્યા હોતી નથી ચરમ સમય કૃતયુ કૃતયુગ્મ એકેન્દ્રિય ઉદ્દેશક છઠ્ઠો, ઉદ્દેશેા છે પ્રથમ ચરમ સમય કૃયુગ્મ મૃતયુગ્મ એકેન્દ્રિયેનો આમે ઉદ્દેશ છે. ચરમસમય કૃતયુગ્મ મૃતયુગ્મ એકેન્દ્રિયાનો દસમે ઉદ્દેશે છે તેમા દેવોની ઉત્પત્તી કહેલ નથી એકેન્દ્રિય મહાયુગ્મ શતક સમાપ્ત भ० ७२
SR No.009327
Book TitleBhagwati Sutra Part 17
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages812
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size54 MB
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