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________________ भगवतीस यथा पौरस्त्ये चरमान्ते समवहतः, 'दाहिणिल्ले चरिमंते उववाहो' दाक्षि. णात्ये चरमान्ते उपपातितः, 'तहा पुरथिमिल्ले समोहमी उत्तरिल्ले चरिमंते उववाएययो' तथा पौरस्त्ये समवहतः उत्तरे चरमान्ते उपपातयितव्यः । यथा पूर्वदिशि समवहतस्य दक्षिणस्यां दिशि समुपपातो वर्गित स्तथैव पूर्वदिशि समव. इतस्य उत्तादिशि अपि समुत्पादो वर्णयितव्यः सू० ॥६॥ ____ मूलम्-अपज्जत्तसुहुमपुढवीकाइएणं भंते ! लोगस्स दाहिजिल्ले चरिमंते समोहए समोहणित्ता जे भविए लोगस्स दाहिणिल्ले चेव चरिमंते अपज्जत्त सुहुमपुत्वीकाइयत्ताए उववज्जित्तए । एवं जहा पुरथिमिल्ले समोहओ पुरथिमिल्ले चेव उक्वाइओ तहेव दाहिणिल्ले समोहए दाहिणिल्ले चेव उववाएयव्यो। तहेव निरवलेसंजाव सुहुमवणस्सइकाइओ पजत्तओ सुहुमवणस्सइकाइएसु चेव पजत्तएसु दाहिणिल्ले चरिमंते उववाइओ, एवं दाहिणिल्ले समोहओ पच्चस्थिमिल्ले उववाएयव्यो। नवरं दुसमइय तिलमइय-चउसमइय विग्गहो, लेसं तहेव । दाहिणिल्ले मंते उववाइओ तहा पुरथिमिल्ले समोहओ उत्तरिल्ले चरिमंते उववाएययो' हे गौतम ! जिस प्रकार से लोशके पूर्वचरमान्त में समवहत हुए जीव के दक्षिण चरमान्त में उत्पाद के विषय में कहा गया है, उसी प्रकार से लोकके पूर्वेचश्मान्त में - समवहत हुए जीवके उत्तर चरमान्त में उत्पाद के सम्बन्ध में भी कह लेना चाहिये । तात्पर्य कहने का यही है कि पूर्वदिशा में समवहत हुए जीवका दक्षिण दिशा में जैसा उत्पाद वर्णित हुआ है उसी प्रकार से पूर्वदिशा में समवहत हुए जीव का उत्तर दिशा में भी उत्पाद वर्णित कर लेना चाहिये ॥१० ॥६॥ दाहिणिल्ले चरिमते उववाइओ तहा पुरथिमिल्ले समोहमो उत्तरिल्ले चरिमंते उववाएयव्वो' 3 गीतम ! २ प्रमाणे न पू यसमान्तमा समुद्धात કરેલ જીવના દક્ષિણ ચરમાતમાં ઉપપાત થવાના સંબંધમાં કહેવામાં આવેલ છે, એજ પ્રમાણે લેકના પૂર્વ ચરમાતમાં સમુદુઘાત કરેલ જીવના ઉત્તર ચરમાન્તમાં ઉત્પન્ન થવાના સંબંધમાં પણ કહેવું જોઈએ. કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે-પૂર્વ દિશામાં સમુદ્રઘાત કરેલ જીવને ઉપપાત ઉત્તર દિશામાં પણ વર્ણન કરી લેવું જોઈએ. સૂ૦૬
SR No.009327
Book TitleBhagwati Sutra Part 17
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages812
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size54 MB
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