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________________ मैन्द्रिका ठीका श०२४ . शं. १ सू०६ अ०सूक्ष्म पृथ्विकायिकोत्पत्तिः ११३ पौरस्त्ये- पूर्वस्मिन् चरमान्ते समवहताः पाश्चात्ये- पश्चिमे चरमान्ते उपपातयितव्याः सर्वे अपर्याप्त सूक्ष्मपृथिवीकायिकत आरभ्य पर्याप्त सूक्ष्मवनस्पतिकायिकान्ता इति । 'अपज्जेत सुहुमपुढवीकाइए णं भंते!" अपर्याप्त सूक्ष्मपृथिवीकायिकः खल भदन्त | 'लोगस्स पुरथिमिल्ले चरिमंते समोहए' लोकस्य धौरस्त्ये पूर्वचरमान् समहतो मारणान्तिकसमुद्वातं कृतवान् । 'समोहणित्ता जे भविए लोगस्स उत्तरिल्ले चरिमंते अपज्जत सुडुमपुढवीकाइयत्ताए वववज्जितए से णं भते !" समवहत्य यो भव्यो लोकस्योत्तरे चरमान्ते अपर्याप्त सूक्ष्मपृथिवीकायिकतया समुत्पत्तुम्, स खलु भदन्त ! कियत्सामयिकेन विग्रहेणोत्पद्येतेति प्रश्नः । उत्तरमाह - एवं जहेब' इत्यादि । ' एवं जहा पुरथिमिल्ले चरिमंते समोहओ' एवं में समवहत हुए जीवों को पश्चिम चरमान्त में उत्पादित कर लेना चाहिये । अर्थात् समल अपर्याप्त सूक्ष्मपृथिवीकायिक से लेकर पर्याप्त सूक्ष्मवनस्पतिकायिक तक के एकेन्द्रिय जीवों का पूर्वोक्त जीवों के जैसा ही उत्पाद पूर्व से पश्चिम वरसान्त में कर लेना चाहिये । 'अपजस सुमपुढची काहए of भंते । 'हे भदन्त ! जो अपर्याप्त सूक्ष्मपृथिवीकायिक जीव 'लोगस्स पुरथिमिल्ले चरिमंते समोहर समोहनिता० भवज्जन्त सुहुमपुढवीकाइयन्ताए उववज्जित से f भंते!' लोकके पूर्वचरमान्त में मारणान्तिकममुद्धात करके मरा और सरफर वह लोकके उत्तर चरमान्त में अपर्याप्त सूक्ष्मपृथिवीकायिक रूपसे उत्पन्न होने के घोग्य हुआ तो हें भदन्त ! ऐसा वह जीव वहां कितने वाले विग्रह से उत्पन्न होता है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं - ' एवं जहा पुरथिमिल्ले चरिमंते समोहओ दाहिणिल्ले चरिઉત્પાદ પશ્ચિમ ચરમાન્તમાં ઉત્પન્ન થવાના સાધમાં થન કહી લેવુ' જોઈએ. અર્થાત્ સઘળા અપર્યાપ્તક સમા પૃથ્વિીકાયિકથી લઈ ને પર્યાપ્ત સૂક્ષ્મ વનસ્પતિકાયિક સુધીના એકેન્દ્રિય જીવેાના પહેલા કહેલ જીવેની જેમ જ પૂ ચરમાન્તથી પશ્ચિમચરમાતમાં ઉત્પાદ કહી લેવા. जपज्जत्त सुडुमपुढबीकाइएण भंते ।" लगवन् ? अपर्याप्त सूक्ष्र पृथ्वी ४। यि 1 'लोगस्स पुरथिमिल्ले चरिमंये समोइए समोहणिता अपज्जत सुहुमपुढवीकाइयत्ताए उववज्जित्तर से णं भंते!' साउना पूर्व अरमान्तमां भारयान्ति સમુઘાત કરીને મરણુ પામે અને મરણ પામીને તે લેાકના ઉત્તર ચરમાન્તમાં અપર્યાપ્ત સૂક્ષ્મ પૃથ્વીકાયિક પણાથી ઉત્પન્ન થવાને ચેo હોય તે હે ભગવન એવે તે જીવ ત્યાં કેટલા સમયવાળી વિગ્રહગતિથી ઉત્પન્ન થાય છે ? આ अश्नना उत्तरमां प्रभुश्री डे - ' एवं जहा पुरथिमिल्ले चरिमंते ! समोहओ
SR No.009327
Book TitleBhagwati Sutra Part 17
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages812
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size54 MB
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