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________________ ___ भगएतीसरे टीका-'जीवाणं भंते !' जीवाः खलु भदन्त ! 'पावं कम्मं किं करिसु करेंति फरिसंति' पापं कर्म किम् पूर्वकाले यकाः, वर्तमानकाले कुर्वन्ति अनागतकाले • करिष्यन्ति१, कस्सुि करेंति न करिश्त' पूर्वकाले अकाः, वर्तमानकाले कुर्वन्ति, अनागतकाले न करिष्यन्ति२, 'करिसुल करेंति करिस्संति' अकार्ष: न कुर्वन्ति करिष्यन्ति३, 'करिसुन कति न करिस्संति अकापुः न कुर्वन्ति न , फरिष्यन्ति४, इति प्रश्नः, यथा प्रश्ने बन्धिपदसरसाद पइविंशतितम वन्धि आदिकाल विशेष को लेकर कही गई है। अब इस २७ में शातक में जीच के छारा जो फर्ण करने की क्रिया की जाती है वह अतीतादिकाल विशेष को लेकर कही जावेगी, इसी सम्बन्ध से यह २७ वां शतक प्रारम्भ हुआ है। 'जीना णं असे ! पावं कसं किं करिस्तु करेंति करिस्म-इत्यादि टीमार्थ--'जीवाणं भंते !' हे सदन्त ! जीवोंने 'पाचं करमं कि - फरिलु करेंलि, पारिस्सनि१' क्या भूतकाल में पापकर्म किया है ? वर्तमान में वे पापकर्म करते है चया ? और भविष्यत् काल में भी वे पापकर्म करेंगे क्या ? अथशा-'करिसु करेंक्ति, न करिमति' भूतकाल में उन्होंने पापकर्म किया हैं क्या? वर्तमान में भी वे पापकर्म करते या ? मचित काल में पापत्रमें नही करेंगे क्या? अथवा'करिस्तु, न करें लि, बारिति३' भूनकाल में उन्होंने पापकर्म किया क्या ? वर्तमान में वे पापकर्म नहीं करते है क्या ? भविष्यत् में ये पापकर्म करेंगे ? अथवा-करिसु, न करेंति, न करिस्तति' सूनकाल में उन्होंने पाप किया है क्या ? दर्तमान में वे पापकर्म नहीं કર્મબંધની કિયા અતીતકાલ વિગેરે કાલ વિશેષને લઈને કહેલ છે હવે આ સત્યાવીસમાં શતકમાં જીવના દ્વારા કર્મ કરવાની જે ક્રિયા કરવામાં આવે છે, તે અતીત વિગેરે કાલ વિશેષને લઈને કહેવામાં આવશે. આ સંબંધને स. मा सत्यावीसमा शत प्रारम ४२वामा माछे 'जीवा णं भंते पाच कम्म किं करिसु करेंति करिस्मति' इत्यादि टी:-जीवा णं भ'ते' ॐ सन् ७वी 'पाव कम्म किं करिसु करें ति फरिस्संति' सूतम पा५४ युछ १ त भानमा नेमे १४ १२ छ ? म विष्यमा ५ ते ५।५४ ४२शे ? अथवा 'करिसु, करे ति न करिस्संति' २ सूतमा भए ५५४ युछे ? पतमान ४ ५५ तमा ५.५४ ४२ छे ? मन भविष्यमा तमे। पा५४म नही 32 ? 'करिंसु न करेंति करिस्सति'३, भू म तसोय ॥५४म ध्यु छ १ त भान राणमा તેઓ પાપકર્મ કરતા નથી? અને ભવિષ્યમાં તેઓ પાપકર્મ નહીં કરે ?
SR No.009326
Book TitleBhagwati Sutra Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages708
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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