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________________ ६७३ भगवतीस्त्र कारको भङ्गो भत्तीति पूर्वभवापेक्षया द्वि-त्रि-चतुरिन्द्रियेषु अपर्याप्तावस्थायां सम्यक्त्वादि चतुष्टयस्य समावे तत्समये आयुवन्धाभावात् । 'पचिंदियतिरिक्खजोणियाणं सम्मासिच्छत्ते तइयो भंगो' पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानां सम्पग्मि-: थ्यात्मपदे तृतीयोऽवघ्नात् न बध्नाति मन्त्स्यतीत्पाकारको भङ्गो ज्ञातव्य इति । 'सेसेसु पदेसु सम्पत्य पढमतइया भंगा' शेषेषु सरय मिथ्यात्वातिरिक्तेषु सर्वपदेषु प्रथमतृतीयौ अवघ्नात् बध्नाति भन्स्यति १, अवध्मात् न बध्नाति भन्स्यती । स्याकारको हावेच भङ्गौ भवत इति । 'मणुस्साणं सम्मामिच्छत्ते अवेदए अकलाईमि । य तइओ मंगों' मनुष्याणां सम्यग्मिथ्यात्वे अवेद के अफपायिनि च तृतीयो । भङ्गः, अवध्नात् न बध्नाति भन्स्यति इत्याकारक एव भवतीति । 'अलेस्स - केवलनाण अयोगी य न पुच्छि जति' अलेश्या केवलज्ञानी अयोगी च न पृच्छयन्ते । अपेक्षा ले इन दो इन्द्रिय, तेहन्द्रिय और चौइन्द्रित जीवों में अपर्याप्त अवस्था में सम्यक्त्वादि चतुष्टय का सद्भाव रहता हैं । और इस समय आयुका पंध नहीं होता है। ___पंचिंति यतिरिन्दग्वजोणियाणं सम्मानिच्छत्ते तइओ मंगो' पञ्चेन्द्रियनियंग्योनिकों के लम्पग्निध्यात्व में तृतीय अंग होता हैं। 'सेले पदेलु सव्वस्थ पढमलइया अंगा' सम्धग्मिथमावसे अतिरिक्त और समस्त पदों में प्रथन और तृतीय ऐले दो ही भंग होते है 'अवघ्नात् , नाति, मत्स्स्थलि, यह प्रथम भग है 'अबधनात् न बध्नाति, अन्स्पति' यह तृतीय भंग. है, 'मणुस्याणं सम्मामिच्छत्ते अधेदए अभलाईमि य तहओ भंगो' मनुष्यों के सम्यग्मिथ्यात्व, अबेदक और अकपाधी इन तीन पदों में तृतीय भंग होता है, 'अलेस केबलनाण अयोगी धन पुच्छिति' अलेप, येवलज्ञानी 'पचिदियतिरिकनजोणियाणं सम्मामिच्छत्ते तइओ भ गो' ५येन्द्रियतिय"य योनियाजागान सभ्ययात्वमा पड डाय छे. 'सेसेसु पएसु सव्वत्थ पढमनइया भगा' सभ्यमिथ्यात्व शिवायना पीन सघणा स्थानमा पडतो मन की मेम मे नगा डाय छे. 'अवघ्नात् , बध्नाति भन्स्यति' मा ५७सा छ 'अवध्नात , न बध्नाति, भन्स्यति' मा श्री छे. __'मणुम्वाणं सम्मामिच्छत्ते अवेदए असाइमि य तइयों भगो' भनुष्याने સમૃમિથ્યાવ, અવેદક અને અકષાયિ આ ત્રણ સ્થાનમાં ત્રીજો ભંગજ . साय छे. 'अलेम्स केवलनाण अयोगी य न पुच्छिजाति' मवेश्य, ज्ञानी,
SR No.009326
Book TitleBhagwati Sutra Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages708
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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