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________________ ६४२ 17 प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२६ उ. ६ सू०१ अनन्तराहारकना० पापकर्मबन्धः हारकः उत्पत्तिमथमसमयाहारक इत्यर्थः एतादृशः खलु भदन्त ! नैरयिकः 'पाव' कम्मं किं वंधी पुच्छा' पापं कर्म किमबधनात् बध्नाति मन्त्स्यतीत्याकारक अंतुभङ्गकः प्रश्नः पृच्छयः संगृह्यते, उधर माह-' एवं ' इत्यादि, 'एवं जहेब अवरोधबन्न उद्देओ हेच निरवसेसं' एवं यथैव अनन्तरोपपन्न कैरुदेशः कथित स्तथैव अयमपि अनन्तराहारकाख्यः षष्ठोद्देशको निरवशेषः समग्रोऽपि भविव्यः | हास्य थम वर्तमानोऽनन्तराहारक इति कथ्यते हे गौतम! afras नारक इति कथ्यते हे गौतम! कश्चिदेकोऽनन्तराहारको नारकः पूर्वकाले पापं कर्म अध्यात्, वध्नाति वर्तमानकाले, भन्रस्यति चानागतअनन्तराहार है, अर्थात् उत्पति के प्रथम समय में आहार ' करनेवाला ऐसा यह नारक पहिले भूतकाल में क्या पापकर्म का पन्ध करनेवाला हुआ है, तथा वर्तमान काल में भी क्या वह पापकर्म का वन्ध करता है ? और भविष्यत् काल में भी क्या वह पापकर्म का बन्ध करनेवाला होगा ? इत्यादि रूप से यहां गौतमस्वामीने जब चार अंगो वाला प्रश्न प्रभुश्री से पूछा तो प्रभुश्रीने उनसे कहा - ' एवं जहेव rinder उसो तहेब निरवसेसं' हे गौतम! जिस रीति से trader नैरविकों के सम्बन्ध में उद्देशक कहा गया है उसी रीति से यह अनन्तराहारक नाम का षष्ठ उद्देशक भी सम्पूर्ण रूप से कहद्रा चाहिये, आहार के प्रथम लमय में वर्तमान अनन्तराहारक कहलाता है तो हे गौतम! कोई एक अनन्तराहारक नैरथिक ऐसा होता है जो पूर्वकाल में पापकर्म का बन्ध कर चुका होता है, तथा. = ઉત્પત્તિનાપ્રથમ સમયમા આહારકરવાવાળા એવા તે નારકાએ પહેલાં ભૂત. કાળમાં પાપકમના છંધ કરેલા હાય છે ? તથા વર્તમાન કાળમાં પણ તે પાપ કના 'ધ કરે છે ? અને ભવિષ્યમાં તે પાપ કર્મોંના આધ કરશે ? ઈત્યાદ્રિ પ્રકારથી ગૌતમસ્વામીએ આ વિષયમાં ચાર ભંગાત્મક પ્રશ્ન પ્રભુશ્રીને પૂછેલ છે. या अश्नना उत्तरमां प्रलुश्री गौतमस्वामीने छे --' एवं ' जहेव अणंतरोववन्त्रप६ि' उद्देसो तहेब निरवसेस' हे गौतम ने प्रमाणे मन तरोष પન્નક નારિયžાના સંબધમાં ઉદ્દેશે! કહેલ છે, એજ પ્રમાણે આ અનન્તરાહારક નામના છઠ્ઠો ઉદ્દેશે। સપૂર્ણ રીતે કહેવા જોઈએ. આહારના પહેલા સમયમાં રહેવાવાળા અનન્તરાહારક કહેવાય છે, તે હે ગૌતમ! કેાઈ એક અન તરહારક નૈયિક એવા હાય છે કે જે ભૂતકાળમા ૫૫ કમનેા ખંધ કરી ચુકેલ હાય છે. તથા વર્તમાન भ० ८१ 3
SR No.009326
Book TitleBhagwati Sutra Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages708
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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