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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२६ २.१ १०४ नैरयिकाणां आयुकर्मबन्धनिरूपणम् ६०३ अत्र यावत्पदेन नागपा विधुग्नि द्वीपोदधि दिखायुकुमाराणां संग्रहो भगति तथा च सर्वेऽपि नागकुमारादय आयुर्वन्धविषये असुरकुमारजदेव ज्ञातव्या इति भावः । 'पुढवीकाइथागं सनत्य वि चत्वारि भंगा' पृथिवोकायिकजीवानां सर्वत्रापि पदेषु चत्वारो भङ्गा बक्तव्याः । 'बरं कपपविखए पढभनय भंगा' नवरं कृष्णपाक्षिकपृथिवी कायिकस्य प्रथमततीय भङ्गो ज्ञातव्यो कृष्णशक्षिकपृथिवीकायिकस्य प्रथमोऽवनात् वध्नाति मत्स्यतीति प्रतीत एक द्वितीय भङ्गो न भवति यतः कृष्णपाक्षिकः पृथिवीकायिक आयुर्वद्ध्वा पुन न मन्त्स्यतीति एवम्न भवति तस्य कृष्णपाक्षिपृथिवीकायिकस्य चरमभवस्याऽभावात्, तृतीयमहरतु 'असुरकुमारों के कान के जैसे यावत् रूतनिलकुमारों के भी नमस्त पदों का कथन जालमा चाहिये। यहां यावत् पर ले बागकुमार सुपर्णकुमार और विद्युत्कुमार' अग्निकुमार, दीपकुमार, उदधिकुमार, दिककुमार और वायुकुमार इन सब सवनपतियोंका गृहण हुआ है। तथा च-सव्यस्त ये नागकुमार आदि आयु बन्ध के विषय में असुरकुमार के जैसे ही होते हैं ऐसा समझना चाहिये। 'पुढवीकाइयाणं सव्वत्थ निचत्तारि भंगा' पृढबीकाधिक जीवों के समस्त पदों में चार भंग होते हैं 'नवरं कण्हपखिए पढन लइ अंगा' परन्तु कृष्णपाक्षिक पृथिवीकायके प्रथा और तृतीय ये दो भंग ही होते हैं। इसके 'अवधनात् बन्यानि सन्तस्यति' ऐला प्रथम भंग लो प्रतीत ही है। द्वितीय भंग यहां प्रतीत नहीं है क्योंकि कृष्णपाक्षिक पृथिवीकाधिक जीव आयुका बन्ध करके फिर वह आयुका बन्ध नहीं करेगा ऐसा वह ‘एवं जाव थणियकुमाराण' असुभाना थन प्रमाणे यावत् स्तनित કુમારને પણ સઘળા પદેનું કથન સમજવું અહિયાં યાવત્પદથી નાગકુમાર સુપર્ણકુમાર, વિઘુકુમાર, અગ્નિકુમાર, દ્વીપકુમાર, ઉદધિકુમાર, દિશાકમાર. અને વાયુકુમાર આ સઘળા ભવનપતિયા ગ્રહણ કરાયા છે, તથા આ સઘળાં નાગકુમારે વિગેરેનું કથન આયુબંધના વિષયમાં અસુરકુમારોના કથન પ્રમાણે જ સમજવું. 'पुढवीकाइयाणं सव्वत्थवि चत्तारि भंगा' पृथ्वीयि वान सा पहा यार साय छे. 'नवर कण्हपक्तिए पढमतइयभंगा' ५२ કૃષ્ણપાક્ષિક પૃથ્વીકાય જીવને પહેલે અને ત્રીજે એ બે જ ભંગો હોય छ. तर 'अबध्नात् बध्नाति भन्स्यति' में प्रसाएन। पडेट। तो निश्चित જ છે, અહિયા બીજો ભંગ નિશ્ચિત નથી કેમ કે-કૃષ્ણપાક્ષિક પુણ્યકાયિકાઇવ આયુને બંધ કરીને પછી પાછે આયુને બંધ કરતું નથી. એ તે હોતો
SR No.009326
Book TitleBhagwati Sutra Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages708
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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