SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 590
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५६६ भगवती ज्ञानावरणीयकर्मणो बन्धविषये चतुर्भङ्गाः प्रश्नः, उत्तरमाह-'एवं जहेव' इत्यादि, 'एवं जहेव पावकम्मरस वत्तव्वया तहेव णाणावरणिज्जस्स वि भाणियच्या' एवं यथैव पापकर्मणो वक्तव्यता भणिता तथैव ज्ञानावरणीयस्यापि वक्तव्यता भणितव्या पठनीया जीवस्य पापकर्मणो बन्धविषये येन प्रकारेण यो यः मङ्गः प्रदर्शित, ज्ञानावरणीयकर्मणो वन्धविषयेऽपि ते एव भङ्गाः प्रदर्शनीयाः ज्ञानावरणीयं कर्म अवधनाज्जीवः किमि त्यादि प्रश्नस्योत्तरमाह-हे गौतम ! कश्चिदेको जीवो ज्ञानावरणीयं कर्म अबध्नात् अतीते, वर्तमाने वध्नाति ज्ञानावरणीयम् अनागते कमणो बन्धं करि ज्यति १, अबध्नात् ज्ञानावरणीयं कश्चिदेको जीवो वध्नाति च वर्तमानकाले न वह उसका पन्ध नहीं करता है ? 'न भन्स्पति' भविष्यत् में वह उसका बन्ध नहीं करेगा? ४ इस प्रकार का यह ज्ञानावरणीयकर्म के बन्ध के विषय में चार भंगों वाला प्रश्न है। उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'एवं जहेव, पायकम्मरल वत्तव्यथा तहेव जाणावरणिजस्स वि भाणियवा' हे गौतम! जैसी वक्तव्यता पापकर्म के बन्ध के सम्बन्ध में कही गई है उसी प्रकार की वक्तव्यता ज्ञानावरणीय कर्म के बन्ध के सम्बन्ध में भी कहनी चाहिये। जीव के प्रकरण में पापकर्म के पन्ध करने में जैसी वक्तव्यता चार भंगों वाली पहिले कही जा चुकी है उसी प्रकार की वक्तव्यता यहां पर भी ज्ञानावरणीय कर्म के बन्ध करने में चारभंगोवाली बक्तव्यता करनी चाहिये, तथा च-हे-गौतम-1 किसी एक.जीव ने अतीत काल में ज्ञानावरणीय कर्म का बन्ध किया है, वर्तमान में वह उसका बन्ध कर रहा है। और भविष्यत् काल में भी वह उसका बन्ध करेगा इस प्रकार का यह 'अवघ्नात् बध्नाति, भन्स्पति' प्रथम भंग है । तथा-किसी एक जीव ने भूतकाल में ज्ञानावरणीय मा प्रश्न उत्तरमा प्रभुश्री ४ छ है-'एवं जहेव पावकम्मस्त्र वत्त ध्वया तहेव णाणावरणिज्जरस वि भाणियव्या' गौतम! पापभनाधना સંબંધમાં જે પ્રમાણેનું કથન કહેવામાં આવેલ છે, એ જ પ્રમાણેનું કથન જ્ઞાનાવરણીય કર્મના બંધના સંબંધમાં પણ કહેવું જોઈએ. જીવના પ્રકરણમાં પાપકર્મને બંધ કરવા સંબંધી જે રીતે ચાર ભંગ રૂપ કથન કરેલ છે, એજ રીતનું ચાર ભંવાળું કથન અહિયાં જ્ઞાનાવરણીય કર્મન બંધ કર - पाता समयमा हेन. ते मा शत सभा:-8 गौतम ! ' જીવે ભૂતકાળમાં જ્ઞાનાવરણીય કર્મને બંધ કર્યો છે, વર્તમાનમાં તે તેને બંધ કરે છે. તથા ભવિષ્યકાળમાં પણ તે તેને બંધ કરશે આ રીતે આ 'अयध्नात् , बध्नाति, भन्स्यति' प र छ.१ તથા કઈ એક જીવે ભૂતકાળમાં જ્ઞાનાવરણીય કર્મને બંધ કર્યો છે,
SR No.009326
Book TitleBhagwati Sutra Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages708
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy