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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२६ उ.१ सू०२ नैरयिक बन्धस्वरूपनिरूपणम् ५४२ ज्ञातव्या इति ।मु०१॥ पूर्व समुच्चयजीवमाश्रित्यैकादशमिद्वारवन्धस्वरूपं निरूपितम् सम्प्रति समुच्चयनैरयिकादिदण्डका नधिकृत्य वन्धस्वरूपं प्रदर्शयति 'नेरइए णं भंते' इत्यादि, - मूलम्-नेरइए णं मंते ! पावं कसं किं बंधी बंधइ बंधिस्लइ ? गोयमा ! अत्थेगइए बंधी० पढमबितिया१। ललेस्ले गं संते ! नेरडा पावं कम्भ० एवं वेव। एवं काहलेस्ले वि, नीललेस्ले वि, काउलेसे कि । एवं काहपक्खिए, सुकपक्खिए, सम्यदिही, मिच्छादिही, सम्मामिच्छादिट्री, नाणी, अभिणिबोहियनाणी, सुयनाणी, ओहिनाणी, अन्नाणी, माइअन्नाणी, सुयअन्नाणी, निभंगनाणी, आहारमन्लोवउत्तो जाव परिग्गहसन्नोवउत्तो, लवेदए, णपुंसमवेदए, सकलाई, जाव लोभकलाई, सजोगी, मणजोगी, बबजोगी, कायजोगी, सागारोवउत्ते, अणागारोवउत्ते, एएसु सव्वेसु पदेसु पढमबितिया अंगाभाणियवा। एवं असुरकुमारस्ल वि वत्तव्वया भाणियव्या, नवरं तेउलेस्ला, इथिवयगा पुरिलवेयगा य अमहिया। नपुंसगवेयगान भन्नति, सेसं तं चेव, सम्वत्थ पढमवितियभंगा। एवं जाव थणियकुमारस्त । एवं पुढ बीकाइयस्स वि, आउक्काइयस्स वि जाव पंचिंदियतिरिक्खजोणिस्त वि सम्वत्थ वि पढम-बितिया भंगा, नवरं जस्ल जा लेस्सा। दिदी, नाणं, अन्नाणं, वेदो, जोगोय जं जस्स अस्थि तं तस्ल भाणियव्वं लेलं तहेव । मणुलास जच्चेव अन्तिम भंग ही होता है । ११ उपयोगद्वार-सागरोवउत्ते चत्तारि, आनागारोवउत्ते वि चत्तारि भंगा' साकार उपयोग वाले में और अनाकार उपयोगवाले में भी चारों भंग होते हैं ।सू०१॥ 'अजोगिस्स चरमो भंगो' भयेगी 4 व 10 डाय छ. 'सागारोवउत्ते चत्तारि, अनागारोवउत्ते. वि चत्तारि भंगा' सा१२९५योगવાળામાં અને અનાકાર ઉપગવાળામાં પણ ચારે બંને હોય છે. સૂ૦ ૧ -
SR No.009326
Book TitleBhagwati Sutra Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages708
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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