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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.८ सू०१ नैरयिकोत्पत्तिनिरूपणम् ५०५ करणे हेतुं दर्शयन्नाह-'नवरे' इत्यादि, 'नवरं उसामइओ विग्गहो' नवरं चतु: सामायिको विग्रहः एकेन्द्रियजीवानां विग्रहमतिः चतुःसमयात्मिका भवतीति एतद्वैलक्षण्यमवगन्तव्यमिति । 'सेसं तं चेव' शेषं तदेव विग्रहगतिव्यतिरिक्त मन्यत् सर्वम् इतरजीववदेव ज्ञातव्यमिति । 'सेवं भंते ! 'सेवं भंते ! ति जाव विहरई तदेवं भदन्त ! तदेवं इति यावद्विहरति, हे भदन्त, भवाद्भवान्तर मुत्स. पंतां जीवानां विषये यद्देवानुप्रियेण कथितं तत् सर्वम् एवमेव-सर्वथा सत्यमेव इति कथयित्वा गौतमो भगवन्तं वन्दते नमस्पति वन्दित्वा नमस्थित्वा संयमेनतपसा आत्मानं भावयन् विहरतीति भावः ॥०१॥ - इति पञ्चविंशतितमेशते अष्टमोदेशकः समाप्तः में जाने में है। परन्तु जो पृथकरूप से हनका सूत्र कहा गया है वह इनकी विग्रहगति 'नवरं च उसमइओ विग्गहो' चार समय की होती है इस विशेषता को लेकर कहा गया है। सेसं तं चेव' बाकी का सब कथन इनके सम्बन्धमारक आदि जीवा के सम्बन्धमा कथन किया गया है वैसा ही है ऐसा जानना चाहिये । 'सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति जाव विहरह' हे सदनल ! एक अव से दूसरे भव में जाने वाले जीवों के सम्बन्ध में जैसा माथन आप देवानुप्रिय ने किया है वह सब आस वाक्य सर्वथा प्रमाण होने से बिलकुल सत्य ही है। इस प्रकार कहकर गौतमस्वामी ने प्रशुश्री को वन्दना की और नमस्कार किया । बन्दना नमस्कार कर फिर बे तप और संयम से आत्मा को भावित करते हुए अपने स्थान पर विराजमान हो गधे ॥१०॥ ___ अष्टम उद्देशक समाप्त ॥२५-८॥ 'समधी सूत्रपा । स छ, त मन विहगति 'नवर चउसमाओं विगाहो' या२ समयनी थाय छे, विशेषणाने सने ४९ छे. 'सेनत चेव' माडीनुसघणु थन ना२४ विगैरेन। सधमा प्रमाणे स छ, એજ પ્રમાણે આ કથનમાં પણ સમજવું. ___ 'सेव भवे । सेव भंते ! त्ति जाव विहरइ' है सावन में सवथा मीनल ભવમાં જવાવાળા જીના સંબંધમાં આપ દેવાનુપ્રિયે જે પ્રમાણે કથન કરેલ છે, તે તમામ કથન આપ્તવાકયરૂપ હોવાથી સર્વથા પ્રમાણ રૂપ છે. હે ભગવન આપી દેવાનપ્રિયનું કથન સર્વથા સત્ય છે આ પ્રમાણે કહીને ગૌતમ સ્વામીએ પ્રભુશ્રીને વદના કરી તેઓને નમસ્કાર કર્યા વંદના નમસ્કાર કરીને તે પછી તેઓ તપ અને સંયમથી પિતના આત્માને ભાવિત કરતા થકા પિતાના સ્થાન પર બિરાજમાન થયા, સૂ૦ ૧૩ આઠમે ઉદ્દેશક સમાપ્ત ર૫-૮ भ० ६४
SR No.009326
Book TitleBhagwati Sutra Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages708
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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