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________________ प्रचन्द्रिका टीका श०२५ उ. ८ सू०१ नैरयिकोत्पत्तिनिरूपणम् 608 जंति, परडीए उबवज्जंति' ते खलु भदन्त । जीवाः किम् आत्मदर्थास्वशक्त्या उत्पद्यन्ते, अथवा परद्धय अन्यदीयशक्त्या समुत्पद्यन्ते भवान्तरेषु ? इति प्रश्नः, भगवानाह - 'गोयमा' इयत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम! 'आयडीए उववज्जंति' आत्मद्धयैवोत्पद्यन्ते 'नो परडीए उबधज्जति' नी परद्ध उत्पद्यन्ते यस्मिन् अधिकरणमुत्पत्तिस्तदधिकरणे एवं यदि ऋद्धिर्भवेत्तदैव ऋद्धयुत्पत्योः कार्यकारणभावो भवेत् कार्यकारणयोः सामानाधिकरण्यनियमात् नहि वैयधिकरये कार्यकारणभावो भवति तथात्वेऽतिप्रसङ्गादिति । 'तेणं मंते ! जीवा कि आयकम्मुणा उववज्जंति परकम्मुणा उववज्जंति' से खलु भदन्त ! जीवाः किमाज्जति परडीए जंववज्जति' हे भदन्त ! वे जीव क्या भवान्तर में अपनी ऋद्धिरूप शक्ति से उत्पन्न होते हैं ? अथवा दूसरे की शक्तिरूप ऋद्धि से उत्पन्न होते हैं ? उत्तर है प्रभुश्री कहते हैं- 'गोयमा आयडीए उबवज्जंति नो परडीए उबवज्जंति' हे गौतम! वे जीव परभव में अपनी ही शक्ति रूप ऋद्धि के बल से उत्पन्न होते हैं । पर की शक्ति रूप ऋद्धि के बल से उत्पन्न नहीं होते हैं ? यहां जो ऐसा कहा गया है उसका तात्पर्य यही है कि जिस आत्मा में परभव में उत्पत्ति की 'कारण भूत अपनी ऋद्धि है उससे ही वह वहां उत्पन्न हो सकता है 'अन्य की ऋद्धि से नहीं, नहीं तो फिर अपनी ऋद्धि और अपनी उत्पत्ति कार्यकारण भाव नहीं बन सकता है । क्यों कि कार्यकारण भाव मैं समानाधिकरणता का नियम होता है । 'ते णं भंते ! जीवा किं आयकरमुणा उववज्जंति, परकम्पुणा उचचज्जति' हे भदन्त वे जीव सूढीए उववजंति' डे लगवन् ते कवी भवान्तरमा पोतानी ऋद्धि३य शक्तिथी ઉત્પન્ન થાય છે ? અથવા ખીજાની શકિત રૂપ ઋદ્ધિથી ઉત્પન્ન થાય છે ? या प्रश्नना उत्तरमां प्रलुश्री - 'गोयमा ! आयइढीए स्ववज्जति नो परहूडीए उववज्जंति' डे गौतम! ते लव परलवमां पोतानी शक्ति ३५ ઋદ્ધિના ખળથી ઉત્પન્ન થાય છે. બીજાની શકિત રૂપ ઋદ્ધિના બળથી ઉત્પન્ન થતા નથી, અહિયાં જે કહેવામાં આવેલ છે તેના ભાવ એ છે કે-જે આત્મામાં પરભવમાં ઉત્પત્તિના કારણુ રૂપ પાતાની ઋદ્ધિ છે, એજ જીવ ત્યાં ઉત્પન્ન થઈ શકે છે, બીજાની ઋદ્ધિથી ઉત્પન્ન થઈ શકતા નથી. નહી' તે પેાતાની ઋદ્ધિ અને પેાતાની ઉત્પત્તીમાં કાય કારણુ ભાવજ બની જાય છે, કેમકે ४ार्य ४।२] भावभां समानाधिकरपयानो नियम हाय है, 'तेणं भंते । जीवा कि' आयकम्मुणा उववज्र्ज्जति, परकम्मुणा उववज्जंति' हे भगवन् ते को शु
SR No.009326
Book TitleBhagwati Sutra Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages708
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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